ये जातियां हैं जातियां,होती हैं जातियां ।
ईन्षान मे नफरत को, बोती है जातियां ॥
ये जातियों के लिये ही, लड़ती हैं जातियां ।
अपनी ही जाति पर ये, मरती हैं जातियां ॥
ऊंच-नीच भेद को, करती हैं जातियां ।
मजहब के नाम पर, ये लड़ती हैं जातियां ॥
अपना-पराया खूब, ये करती हैं जातियां ।
ईन्षानियत का खून, भी करती हैं जातियां ॥
करती घमण्ड जाति पर,देखो ये जातियां ।
बहुतों को करती तंग ये,देखो ये जातिया ॥
नफरत की आग मे, ये जलती हैं जातियां ।
तुमसे बड़े हैं हम, ये कहती हैं जातियां ॥
ईन्षानियत का पाठ, पढ़ाती हैं जातियां ।
पर जाति के जहर को, बढ़ाती है जातियां ॥
भगवान ने बनाया, ना कोई जातियां ।
यहां आते जब भी, कोई ना होती जातियां ॥
ईन्षान की न कोई, होती हैं जातियां ।
ईन्षानियत हो जाति, ना कोई हो जातियां ॥
सबके हैं खून लाल,या कोई हो जातियां ।
होते हैं अंग एक से,कोई हो जातियां ॥
फिर उंची-निची भेद क्यों, करती है जातियां ।
करती हैं सबसे द्वेष क्यों, करती हैं जातियां ॥
ये जातियां हैं जातियां,होती हैं जातियां ।
ईन्षान मे नफरत को, बोती है जातियां ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-08-2013,sunday,6pm,(719),
pune,maharashtra.
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