ढेरों गम है मिला जमाने में, हम तो युं ही उन्हें बुलाते रहे ।
मेरे दिल में तो दर्द उठता रहा, पर उन्हें हंस के हम छिपाते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
हम तो उनको ओढ़ाये थे चादर, वे तो ईज्जत मेरी लुटाते रहे ।
हम तो दीपों से थे सजाये उन्हें, वे तो उनसे हमें जलाते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
वे जब आते थे घर में मेरे कभी, हम तो पलकें सदा बिछाते रहे ।
वे जब जाने की बात करते थे, मेरे आखों से आंसू आते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
हमने चाहा था प्यार उन सब से,वे तो नफरत हमको देते रहे ।
फूल उनके लिये बिछाये थे, वे तो कांटे हमें चुभाते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
वो जब पहले थे तो रहम दिल थे, बाद में वे अहम दिखाते रहे ।
कभी हम मिल के इक संग रहते थे, अब तो नजरें हमसे बचाते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
दिल तो टूटा मेरा जमाने से, हम तो किससे कहें और कैसे कहें ।
अब तो जाना नहीं वहां मोहन, जहां तुम्हें दुश्मन कोई समझते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में, हम तो युं ही उन्हें बुलाते रहे ।
मेरे दिल में तो दर्द उठता रहा, पर उन्हें हंस के हम छिपाते रहे ॥
ढेरों गम है मिला जमाने में.........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
21-03-2000,tuesday,5:20pm,
chandrapur,maharashtra.
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