Monday 19 February 2024

मन

हवा की गति, से भी जादा,
और प्रकाश की गति, से भी तेज
जान सका, आज तक कोई,
मन का देखो, कोई भेद

जहां पहुंच, पाता कोई,
वहां मन तो पहुंच, जाता पहले
मन से बड़ा, कोई भाई,
मन के तो, क्या कहनें

एक जगह बैठे-बैठे,
ये सब जगह की, सैर कराता
पृथ्वी,चाँद,सितारों पे,
मन तो हमें, पहुंचाता

अच्छी बातों को, सोच-सोच कर,
मन तो बहुत हर्षाता
पर बुरी बात, हो कोई यदि,
वहां मन तो, बहुत घबराता

हाथ-पांव नहीं हैं इसको,
ना ही कान आखें
पर कर ये सकता, सब कुछ देखो,
इसकी तो निराली बातें

हवा की गति, से भी जादा,
और प्रकाश की गति, से भी तेज
जान सका, आज तक कोई,
मन का देखो, कोई भेद


मोहन श्रीवास्तव (कवि)

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