हवा की गति, से भी जादा,
और प्रकाश की गति, से भी तेज ।
जान न सका, आज तक कोई,
मन का देखो, कोई भेद ॥
जहां न पहुंच, पाता कोई,
वहां मन तो पहुंच, जाता पहले ।
मन से बड़ा, न कोई भाई,
मन के तो, क्या कहनें ॥
एक जगह बैठे-बैठे,
ये सब जगह की, सैर कराता ।
पृथ्वी,चाँद,सितारों पे,
मन तो हमें, पहुंचाता ॥
अच्छी बातों को, सोच-सोच कर,
मन तो बहुत हर्षाता ।
पर बुरी बात, हो कोई यदि,
वहां मन तो, बहुत घबराता ॥
हाथ-पांव नहीं हैं इसको,
ना ही कान व आखें ।
पर कर ये सकता, सब कुछ देखो,
इसकी तो निराली बातें ॥
हवा की गति, से भी जादा,
और प्रकाश की गति, से भी तेज ।
जान न सका, आज तक कोई,
मन का देखो, कोई भेद ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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