कैसे करूं माँ, विदाई मै तेरी,
जाने का दुःख मोसे, सहा नही जाये ।
जैसे बिदा हो कोई, बिटिया की डोली,
वैसे ही दुःख मोसे, कहा नही जाये ॥
कैसे करूं मा.......
फुटि-फुटि रोएं सब, घर के लोगवां,
अंखियन के आंसू, सबसे रोका नही जाये ।
छुपि-छुपि रोएं सब, घर के लोगवां,
तोहरी बिदाई का गम, देखा नही जाये ॥
कैसे करूं मां.........
नौ दिन करते थे ,सब तेरी सेवा,
आज हमे छोड़ के ,चली जा रही हो ।
तुझको खिलाते थे सब, रूखा-सुखा मेवा,
आज मुंह मोड़ कर, चली जा रही हो ॥
कैसे करूं मा...........
थर-थर कांप रहे, हाथ मेरे
मइया,
तुझे तो जल मे, छोड़ा नही जाये ।
धक-धक धड़के है, दिल मेरा मइया,
तुझे मां अकेली यहां, छोड़ा नही जाये ॥
कैसे करूं मां ,बिदाई मै तेरी,
जाने का दुःख मोसे, सहा नही जाये ।
जैसे बिदा हो कोई, बिटिया की डोली,
वैसे ही दुःख मोसे, कहा नही जाये ॥
कैसे करूं मां..........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
१६-४-२०१३,मंगलवार,शाम-४.३० बजे,
पुणे,महा.