Sunday 23 October 2011

दिवाली ने निकाला दिवाला

दिवाली ने निकाला दिवाला,
लोगो के चेहरे लाल हुए !
इस कमरतोड़ मंहगाई से,
लोगो के हाल बेहाल हुए !!

जितनी जिसकी चादर थी,
उसके अंदर ही जिसने खर्च किए !
दिवाली की तरह ही खुशियां,
अपने लिए हर पल ही लिए !!

जिसने भी लोगों को देख-देख कर,
अपने खर्चे अधिक बढ़ाए !
बिना वजह ही वे अपने सिर पर,
कर्जे का बोझ चढ़ाए !!

इसीलिए ही अपनी जितनी आवक हो,
उतने ही खर्चे किए जाए !
चहरे पे मुस्कान हमेशा हो,
और परिवार मे खुशिया नित आए !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक०६/११/१९९९,शनिवार,दोपहर-११.४५ बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

रोज दिवाली तो उन्ही की रहती

आई दिवाली दुल्हन बन कर,
घर -आंगन की हुई सफ़ाई !
खिड़किया -दरवाजे रंग-बिरंगे,
और दीवारों की हुई रंगाई !!

गली-मुहल्लों की हुई सफ़ाई,
लोगो के रस्ते साफ़ हुए !
पर सरकारी सड़कों के तो,
हाल और बेहाल हुए !!

गड्ढे जगह-जगह पर हैं,
जहा कमर टेढ़ी कर चलना पड़ता !
कहीं-कहीं गंदे पानी के जमाव,
जहा कचरों पर से गुजरना पड़ता !!

कई सरकारी दफ़्तरों मे केवल,
कागज के घोड़े दौड़ाए जाते !
बिना काम किए ही उनपे,
सड़कें,पुल नालिया बनाए जाते !!

रोज दिवाली तो उन्हीं की रहती,
जिनके रिश्वतों से जेब भरे रहते !
मुंह मे दलाली का पान चबाकर,
जिनके ईमान सदा मरे रहते !!

मोहन श्रीवास्तव  (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२०/१०/१९९९९,वुद्धवार,शाम-०७.०५ बजे,
चंद्रपु

बेइमानी की राह पे

बेईमानी की राह पे,चल पड़ा ईंसान आज,
हर जगह बेईमानी, का ही बोल-बाला है !
धूर्तता -चालाकी सबके ,भर गया दिमाग मे,
बाहर से सफ़ेद, मगर अन्दर से काला-काला है !!

पैसों के खातिर जिस्म, बिक रहा बाजार मे,
तो धर्म के नाम पर ,कमाई ही कमाई है !
झूठ-मूठ प्रवचन देते ,कई इस संसार मे,
आस्था के नाम पर, ठगाई ही ठगाई है !!

कई भ्रष्ट मक्कार ,घुसें है सरकार मे,
जहां लाखों -करोणों का, हवाला किया जाता है !
ठगी हो रहा है आज, शिक्षा के दरबार मे,
वहा भी कई तरह से ,घोटाला किया जाता है !!

सरकारी विभागों का, हो गया है बुरा हाल,
वहा तो बस पैसों का, सवाल रखा जाता है !
अब तो निजी संस्थानो मे, हो रहा है चलन आज,
वहां भी तो रिश्वतों का, जाल बुना जाता है !!

जन-तंत्र बन गया है, आज देखो भ्रष्ट तंत्र,
जहां देखो वहां बस ,दिखता भ्रष्टाचार है !
सिधे-सादे ईंसानों का, रो रहा है दिल आज,
उनके लिए चारो तरफ़, कांटो का ही हार है !!

लगभग हर वस्तुवों मे ,हो रहा मिलावट आज,
मिलावट खोरों का, बढ़ रहा साम्राज्य है !
बेईमानी का तांडव ,हो रहा संसार मे,
ये हम सब के लिए, बड़ा ही दुर्भाग्य है !!

बेईमानी की राह पे, चल पड़ा ईंसान आज,
हर जगह बेइमानी, का ही बोल-बला है !
धूर्तता-चालाकी सबके, भर गया है दिमाग मे,
बाहर से सफ़ेद, मगर अन्दर कला-काला है !!



मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२०/०२/२०११,

रविवार सुबह -:५०बजे,रायपुर (..)