यदि हम सरकारी दुकान के मालिक होते
तो हम अपनी खूब तिजोरी भरते !
उन अधिकारियों को भी खुश रखके,
हम अपना खाना पूर्ती करते !!
शक्कर-राशन -तेल को हम ,
सरकारी दरों पर उठाते !
बाटने से पहले उन्हे हम बाज़ार मे बेचते,
बाकी कार्ड धारकों को अंगूठा दिखाते !!
वस्तुओं के लिए जब हो हल्ला मचता,
तब थोड़ा उनमे भी बांट हम देते !
एक किलो शक्कर के लिए,उन्हे,
घंटों लाइन मे खड़े हम करते !!
इस तरह से वे सब थक जाते,
फ़िर दुबारा आने का नाम नही लेते !
हम तब उनके राशन -तेल को,
उची दरों मे बाजार मे बेच देते !!
अधिकारियों से मिल-जुल करके,
फ़िर हम जनता का राशन पचा लेते !
ऐसे हराम के पैसों से,
हम अपनी उंची हवेली बना लेते !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-१३/११/२०००,सोमवार-०.५५ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)