Wednesday 19 October 2011

यदि हम सरकारी दुकान के मालिक होते

यदि हम सरकारी दुकान के मालिक होते
तो हम अपनी खूब तिजोरी भरते !
उन अधिकारियों को भी खुश  रखके,
हम अपना खाना पूर्ती करते !!

शक्कर-राशन -तेल को हम ,
सरकारी दरों पर उठाते !
बाटने से पहले उन्हे हम बाज़ार मे बेचते,
बाकी कार्ड धारकों को अंगूठा दिखाते !!

वस्तुओं के लिए जब हो हल्ला मचता,
तब थोड़ा उनमे भी बांट हम देते !
एक किलो शक्कर के लिए,उन्हे,
घंटों लाइन मे खड़े हम करते !!

इस तरह से वे सब थक जाते,
फ़िर दुबारा आने का नाम नही लेते !
हम तब उनके राशन -तेल को,
उची दरों मे बाजार मे बेच देते !!

अधिकारियों से मिल-जुल करके,
फ़िर हम जनता का राशन पचा लेते !
ऐसे हराम के पैसों से,
हम अपनी उंची हवेली बना लेते !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१३/११/२०००,सोमवार-.५५ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)



हम भी कभी थे ट्रैफ़िक पुलिस मे

हम भी कभी थे ट्रैफ़िक पुलिस मे,
जब हम कई तरह से पैसा कमाते थे !
साहब लोगों को खुश करके रखते,
और लोगों पर रोब जमाते थे !!

चलान की पुस्तक हाथ मे लेकर,
हम वाहनों की चेकिंग करते थे !
पुलिस-कोर्ट का भय दिखलाकर,
हम उनसे अपनी जेबें भरते थे !!

आमतौर पर जादा तर वाहन और चालक मे,
कुछ कुछ कमियां रहती ही हैं !
कभी टैक्स है तो इंश्योरेन्स नही,
कभी लाइसेन्स की मजबूरियां रहती ही हैं !!

इन्ही सब बातों का लाभ उठाकर,
हम उनसे मनमानी रकमें वसुलते थे !
वाहन चेकिंग का पखवारा हफ़्ता-दिन का नही,
हम बारह महिनों ही चेकिंग करते थे !!

इन सबके साथ-साथ हम,
फ़ुटपाथ वालों पे भी रोब जमाते थे !
उन दुकानदारों को भय दिखलाकर,
हम उनसे भी पैसा कमाते थे !!

उन वाहन मालिकों से महिना लेते,
जिनके वाहन अपने एरिया मे चलते थे !
बाकी औरों दुपहियों को,
अपने भय के पास मे जकड़ लेते थे !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१३/११/२००० ,सोमवार रात - .१५ बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)