हम भी कभी थे ट्रैफ़िक पुलिस मे,
जब हम कई तरह से पैसा कमाते थे !
साहब लोगों को खुश करके रखते,
और लोगों पर रोब जमाते थे !!
चलान की पुस्तक हाथ मे लेकर,
हम वाहनों की चेकिंग करते थे !
पुलिस-कोर्ट का भय दिखलाकर,
हम उनसे अपनी जेबें भरते थे !!
आमतौर पर जादा तर वाहन और चालक मे,
कुछ न कुछ कमियां रहती ही हैं !
कभी टैक्स है तो इंश्योरेन्स नही,
कभी लाइसेन्स की मजबूरियां रहती ही हैं !!
इन्ही सब बातों का लाभ उठाकर,
हम उनसे मनमानी रकमें वसुलते थे !
वाहन चेकिंग का पखवारा हफ़्ता-दिन का नही,
हम बारह महिनों ही चेकिंग करते थे !!
इन सबके साथ-साथ हम,
फ़ुटपाथ वालों पे भी रोब जमाते थे !
उन दुकानदारों को भय दिखलाकर,
हम उनसे भी पैसा कमाते थे !!
उन वाहन मालिकों से महिना लेते,
जिनके वाहन अपने एरिया मे चलते थे !
बाकी औरों व दुपहियों को,
अपने भय के पास मे जकड़ लेते थे !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१३/११/२००० ,सोमवार रात - ०.१५ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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