जब तक कानून, सख्त नहीं होंगे,
और ना ही कठोर सजा होगी ।
कुछ लोगों की, जान ही क्या,
कई जान, कुरबान होंगी ॥
वोटों के लिये, ये सरकारें,
कड़े कानून, नही हैं बना पाती ।
आम जनता मर, रही है आज,
और सरकार, मन ही मन मुस्काती ॥
या हो हिंदू या, हो मुस्लिम,
या किसी धर्म,मजहब के हों ।
सब के लिये हो, एक कानून,
चाहे वो किसी राज्यों के, सरहद के हों ॥
हम भारत में, रहते हैं तो,
हम सब ,हैं भाई-भाई ।
ईंसानियत धर्म है, भारत का,
ना हिंसा,क्रूरता, और कुटिलाई ॥
एक नहीं यहां, दो-दो कानून,
इसलिये निर्दोष, हैं मारे जाते ।
अपराधी घुमते, सरे आम,
और निर्दोष को, सजा दिलाए जाते ॥
बीते इतिहास से, हम सीखें,
और आपस में, लड़ना बन्द करें ।
किसी भी तरह का, हिंसा न करें,
कुदरत के न्याय से, तो हम डरें ॥
कोई भी यहां, अमर है नही,
सबको तो वहां, पर जाना है ।
इसलिये जितना दिन, हम यहां पे हैं,
सबको प्यार से, गले लगाना है ॥
सरकारी कानून से, भले हम न डरें,
पर कुदरत के कानून से, हमें डरना ही है ।
यदि बुरा कर्म, कर रहे आज हम,
तो कल उसका, सजा भुगतना ही है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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28-07-2013,sunday,12:10pm,