Sunday 8 September 2013

गणेश आरती (ॐ जय गणपति देवा )

जय गणपति देवा,स्वामी जय गणपति देवा
कब से   तुम्हे पुकारे..., तुम रूठे हो क्या देवा
जय गणपति देवा.............

मूषक वाहन तुम्हारा प्रभु, शंख,कमल धारी
श्रद्धा से तुमको सेवत..., बालक, नर, नारी
जय गणपति देवा.............

पिता तुम्हारे शिव जी हैं,और माता पार्वती
गौर बदन है तुम्हारा...., और मुख पे है ज्योति
जय गणपति देवा.............

भुजा चार अति शोभित,सर पे मुकुट धारी
लडुअन कर भोग लगावत... , जो तुम्हे है नित प्यारी
जय गणपति देवा.............

तुम आदि-अनादि,अजन्मा, प्रभु सब के हो स्वामी
तुम प्रथम पूज्य सुरगणों मे हो... , और तुम अन्तर्यामी
जय गणपति देवा.............

श्री गणेश का नाम है लेकर, जो काम किये जाते
होते हैं काम सब उनके.. ,जो तुम्हे निश-दिन हैं ध्याते

जय गणपति देवा,स्वामी जय गणपति देवा
कब से   तुम्हे पुकारे..., तुम रूठे हो क्या देवा
जय गणपति देवा.............

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-09-1999,wednsday,8.30 pm,
chandrapur,maharashtra.




बिन घरनी घर भूत का डेरा

बिन घरनी घर, भूत का डेरा,
ये झूठ नही, सच्चाई है ।
पत्नी के घर मे, नही रहने से,
तो उसकी याद ,,बहुत ही सताती है ॥

पति-पत्नी मे होते तकरार बहुत,
इससे रिश्तों मे ,प्यार और बढ़ता है ।
तू-तू ,मै-मै, जब होता है कभी,
तो आदमी, प्यार और करता है ॥

सच माने तो वह केवल ,पत्नी ही नही,
वो हमारे जीवन की ,अधिकारी है ।
रखती है हमारा, ध्यान सदा,
हम भी उसके, आभारी हैं ॥

ये भी कभी भी, न भुलें,
कि उसकी रूप की, तीन निशानी है ।
सुबह मां और दिन मे है बहन ,
और रात को वो, दिलजानी है ॥

पर गृहिणी यदि, समझदार मिली,
तो उस घर मे, खुशियां ही खुशियां हैं ।
पर कहीं अगर, दुखदायी सी मिली,
तो वहां बस दुख की ही, केवल बगिया  है ॥

बिन घरनी घर, भूत का डेरा....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२४--२०१३,बुद्धवार,११.२० बजे,

पुणे, महा.