Friday 5 July 2013

गजल (तुम्हें खिलता हुआ, गुलाब कहूं )

तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं
या मै छलका हुआ, शराब कहूं
तुम्हे खिलता हुआ....

तुम्हे पिघला हुआ मै, मोम कहूं
या चांदनी रात की, चकोर कहूं
तुम्हे खिलता हुआ....

तुम्हें रिमझिम सा, बरसता हुआ,बरसात कहूं
या मै पूनम की तुम्हें, रात कहूं
तुम्हे खिलता हुआ....

तुम्हे जलता हुआ, मै आग कहूं
या वीणा की कोई, राग कहूं
तुम्हे खिलता हुआ....

आई मौशम मे, तुम्हे बहार कहूं
या तो फूलों की, झुकती डार कहूं

तुम्हे खिलता हुआ, गुलाब कहूं
या मै छलका हुआ, शराब कहूं
तुम्हे खिलता हुआ....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
15-06-2013,11.15 am,saturday,
in pune-bilaspur express train