क्या-क्या सबने सोचा था,
और क्या-क्या सपने देखे थे !
जब ताज पहनाया था सबने उनको,
तब उनकी मुस्कान अनोखे थे !!
ज़हरीली मुस्कान दिखा करके,
वे अपनी नाकामियों को छिपाते रहे !
अंतर्राष्ट्रीय किमतो कि दुहाई देकर,
वस्तुवों के नित दाम बढ़ाते गये !!
प्याज के आंसू रूलाकरके,
हमे मंहगाई की भेंट चढ़ा डाला !
बेकसूर भोली जनता को,
अपनी नाकामी की आग मे जला डाला !!
दया नही है इनके दिल मे,
सदा अपने मित्रों को मनाने मे लगे रहते !
चाहे अपनी प्रतिष्ठा धूमिल हो,
बस अपनी कुर्सी बचाने मे लगे रहते !!
सत्ता सुख को हमसे लेकर,
और हम पर मंहगाई का कफ़न पहना डाला !
पेट्रोलियम पदार्थों कि किमतें बढ़ाकर,
रसोई गैस से हमें जला डाला !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक -०२/१०/२००० ,शनिवार ,दोपहर- २.३० बजे,
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)