Friday 30 September 2011

अपने संबिधान को परखना होगा



परिवर्त प्रकॄति भी चाहती है,
परिवर्तन समाज को प्यारा है!
दुनिया के संबिधानों मे देखो,
अपना संबिधान तो न्यारा है!!

इस तेजी से बदलती दुनिया मे,
अपने संबिधान में संसोधन जरुरी है!
इस बढ़ते हुए समीकरण मे,
संसोधन करना मज़बूरी है!!

संबिधान के मूल-भूत ढ़ाचे से,
कोई खिलवाड़ नही किया जाए!
वोटों की राजनीति से हटकर,
उचित बदलाव किया जाए!!

ऐसे नेक कार्यों मे ,
लोगों का विचार सुनना होगा!
आरोप-प्रत्यारोप से बचकर,
अपने संबिधान को परखना होगा!!

    मोहन श्रीवास्तव
    दिनांक-१६/०२/२०००,वुद्धवार,सुबह- १०.४५ बजे
        चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

पर इनको देश लूटने पर



हालात देश का देख-देख कर,
आंखों मे आंसू आ जाता!
दर्द दिलों में होता है,
और उजाले पर अंधेरा छा जाता!!

कुर्सी पाने की होड़ मे देखो,
नित जूतम-लातम होते हैं!
जातियता का ज़हर घोलकर,
ए बहुत चैन की नींद में सोते हैं!!

देश पर ध्यान है कम इनका,
सदा वोटों के गणित में उलझे रहते!
अपराध व घोटाले करते जाते,
और निर्दोष होकर ए छूटते रहते!!

एक आम आदमी के गलती करने पर,
उसे हर तरह की सजांए दी जाती!
पर इनको देश लूटने पर ,आदर से,
विरोधी दलों मे पनाह है मिल जाती!!

राजनीति के ऐसे कुछ नेता,
जो देश का खून पी रहे हैं!
लोगों मे दहशत फ़ैलाकर,
वे खूब मजे से जी रहे हैं!!

 मोहन श्रीवास्तव
 दिनांक-०९/०२/२००० , वुद्धवार, शाम ५ बजे

मैं हूं कांटा, तुम तो गुलाब


मद होश हो गया तेरे रूप-रंग से,
नयनों के बाण से घायल हुआ!
तेरी रेशमी ज़ुल्फ़ों के प्रहार से,
सचमुच मै पागल सा हुआ!!

मुस्कान तुम्हारी जीवन बन गई,
बाहें जो गले का हार बना!
है रात अंधेरी पर तेरा मुख चंदा,
नफ़रत जो तुम्हारा प्यार बना!!

हम दूर-दूर व अंजाने थे,
कैसे हम दोनों निकट आए!
जब घड़ी मिलन की आई तो,
गगन मे बादल हैं छाए!!

रहता हूं जहां ,तुम भी तो वहां,
तुम्हे दिल मे तो सजा के रखता हूं!
मैं हूं कांटा, तुम तो गुलाब,
तेरी खुशबू के तले मै रहता हूं!!

पास आ गए हम दोनों,
अब दूर तो जाना मुश्किल है!
कभि दूर हुई,यदि तुम मुझसे,
तब मोहन की मौत तो निश्चित है!!

  मोहन श्रीवास्तव
  दिनांक-२५/०७/१९९९, रविवार,रात १२.४५ बजे
  चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

हो गए हैं आज कई रावण

रो रहा है भारत आज दर्द से,
हे , श्री राम कहां तुम खोए हो !
उस रावण को मार के क्या ,
आराम की नींद मे सोए हो !!

उस समय तो एक ही रावण था,
जिसने लोगों पर कहर बरपाया था !
दानव कुल मे वह पैदा होकर,
अपना ज़हर फ़ैलाया था !!

हो गए हैं आज कई रावण,
जो मानव कुल मे पनपे हैं !
जिनके अत्याचारों का डंका,
आज हर जगह-जगह पे हैं !!

चोरी-डाका- आगजनी,
वे लोगों मे डर फ़ैला रहे हैं !
अपनी हवस मिटाने के लिए,
वे अबलावों पे ज़ुल्म ढा रहे हैं !!

भ्रष्ट्राचार अत्याचार,
रोज-रोज ही उग रहे हैं !
रह रहे हैं बुझे-बुझे से सब,
और मन ही मन सुलग रहे हैं !!

आज के इन रावणों को ,
हे श्री राम मारने जावो !
रोते हुए भारत की आत्मा को,
इनसे छुटकारा दिला जावो !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१७/१०/१९९९, रविवार,दोपहर .१० बजे

 चंद्रपुर(महाराष्ट्र)


अब एड्स ने पांव पसारा है

संभल जावो ऐ आशिक आवारों ,
इस बढ़ते हुए एड्स की बिमारी से !
खुद को इससे अपने को बचावो,
इस मौत की महामारी से !!

बिजली की गति से यह बढ़ रही बिमारी,
जिसमें प्राण तो जाना निश्चित है !
यह छुआ -छूत का रोग भी है,
इससे बच पाना मुश्किल है !!

जीवन से प्यार है तुमको जरा,
और औरों का जीवन प्यारा है !
तो पर स्त्री गमन से दूर रहो,
अब एड्स ने पांव पसारा है !!

एड्स की बिमारी यदि तुम्हे लगी,
तो समाज से बहिस्कृत किए जावोगे !
चारों तरफ़ से थू-थू-होगी,
और घुट -घुट कर मर जावोगे !!

इसलिए यदि इससे बचना है तो,
अपनी दुर्बासनावों पर काबू पाना होगा !
बे-शर्मी की मौत नही मिले,
इससे अपने को दूर रखना होगा !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक - २६/०३/२०००,
रविवार, दोपहर १२.३० बजे

चंद्रपुर (महाराष्ट्र)