Saturday 29 October 2011

फ़ूल से भी नाजुक है यह तन


फ़ूल से भी नाजुक है यह तन,
और यह पत्थर से भी कठोर है!
इसको चाहे जैसे बनावो,
यह हर परिस्थिति मे ढल सकती है!!

बर्फ़िली-सर्द हवावो और,
अग्नि को सह सकती है यह!
समुद्र की गहराई का पता लगा,
और एवरेस्ट की चढ़ाई चढ़ सकती है यह!!

जल से लेकर पत्थर तक,
हर चीज पचा सकती है यह!
बस सब्जी-अनाज की बात ही क्या,
कांच को भी खा सकती है यह!!

वचनों से आहत हो सकती है यह,
और तलवार की धार सह सकती है यह!
बस तलवार-कटार की बात ही क्या,
यम की मार भी सह सकती है यह!!

जो सपनो मे भी नही सोचा जा सकता,
यह कई अनोखे कारनामे कर सकती है !
इसको चाहे जैसे बनावो,
यह हर परिस्थिती मे ढल सकती है!!

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-२६/०१/२००१,शुक्रवार,सुबह-९.२० बजे,
थोप्पुर घाट,धर्मपुरी(तमिलनाडु)

सब जीव तो अपने जैसे है



सब जीव तो अपने जैसे है,
उनको भी अपने जैसा मानो!
ईश्वर का अंश है उनमे भी,
उनको भी ईश्वर जैसा जानो!!

जिवों को सताना महापाप,
और हत्या से बड़ा कोई जुर्म नही!
भूल के लिए हो पश्चाताप,
और ईंसानियत से बड़ा कोइ धर्म नही!!

ईश्वर ने बनाया हम सब को,
वे जानवर बने, हम ईंसान बने!
पर उनकी हत्या करने से,
हम ईंसान से एक हैवान  बने!!

मद्य-मांस का भक्षण कर,
क्यूं मानवता को कलंकित करते हो!
उन भोले-भाले जीवों के,
रक्त को क्युं तुम पिते हो!!

मांशाहार को छोड़ के भाई,
आवो शाकाहार को अपनाएं!
जिससे तन-मन- की शुद्धता बनी रहे,
और पाप के कलंक से हम बच जाएं!!

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-०५/०१/२००१,शुक्रवार,शाम-४.४५ बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

कब तक ऐसे ही सहते रहोगे

कब तक ऐसे ही सहते रहोगे,
उनके अत्याचारों को !
कब तक ऐसे यूं ही डरते रहोगे,
उन आततायियों के दुराचारों से !!

दिन -दहाड़े हत्याएं करके ,
वे खुले आम घूमते है !
अबलावों की ईज्जत लूट के वे,
मस्ती के साथ झुमते है !!

आज अत्याचार हुआ हम पर,
कल तुम पर भी वही दुहराएंगे !
एक-एक कर सब पर वे,
अपना आतंक मचाएंगे !!

अन्याय अत्याचार को सहना,
ये वीरता नही कायरता है !
अपराधियों के सामने सर को झुकाना,
यह विनम्रता नही अराजकता है !!

एकता मे अपरिमित बल है,
आगे बढ़ो और मुकाबला करो !
इसकी उनको सजा दिला,
उनके आतंक को नष्ट करो !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२८/१२/२०००,मंगलवार,रात्रि-०१ बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)

ऐ जीवन तेरे कितने रूप


ऐ जीवन तेरे कितने रूप,
कभी छाव, कभी तो धूप है!
पल भर मे कभी गम का साया,
कभी खुशी के रंग अनूप है!!

कदम -कदम पे संघर्ष है,
चाहे लाख बचे तू जमाने से!
कभी विषाद तो कभी हर्ष है,
जो खतम न हो आसू बहाने से!!

तू सोचे कुछ और क्या हो जाए,
तेरी चाल पलट जाए जीवन!
दिन मे  संग रहे वो तेरे,
पर रात मे बन जाए बिरहन!!

तू बस भूल-भुलैय्या मे भटकता रहे,
पर आश न छोड़ा है तुमने!
तू बस माया के बजरिया मे मचलता रहे,
जब तक श्वाश न छोड़ा है तन ने!!

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-२७/१२/२०००,वुद्धवार,रात्रि- १२ बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)

Thursday 27 October 2011

यदि हम होते भ्रष्टाचार के मंत्री

यदि हम होते भ्रष्टाचार के मंत्री,
तो हम जी भर के पैसा कमाते थे !
मुंह मे दलाली का पान चबाकर,
हम पाप की गंगा मे नहाते थे !!

भ्रष्टाचार को बढ़ावा कैसे मिले,
इसके लिए नित नई खोज हम करते !
अपने इस खोज के माध्यम से,
हम अपनी तिजोरी भरते !!

ईमानदारी को छोड़ के सब कोई,
 बेइमानी को गले लगावो !
शुद्ध आचरण को दूर भगा,
अब भ्रष्ट आचरण को अपनावो !!

ऐसे विभिन्न तरह के श्लोगन से,
हम भ्रष्टाचार को बढ़ावा दिलाते !
गिनिज बुक आफ़ वर्ल्ड रिकार्ड मे,
तब हम अपने नाम को दर्ज कराते !!

योजनाएं बनाने से पहले,
उनमे हम भ्रष्टाचार का प्रतिशत रखते !
कई आकर्षक पुरष्कारों से,
हम उन भ्रष्टाचारियों को सम्मानित करते !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-०१/१२/२०००,शुक्रवार,सुबह-.२० बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)