Friday 9 August 2013

आग लगाए ये सावन

आग लगाए ये सावन,
तुझे क्या बतलाऊं गोरी ।
रहि-रहि के ये बदरा बरसे,
याद सताये तोरी ॥

रिम-झिम,रिम-झिम, बदरा बरसे,
तन में आग लगावे ।
टप-टप,टप-टप,ओरी चुए,
धड़कन मोर बढ़ावे ॥

सर-सर,सर-सर,पवन चले रे,
मयुरा नाच दिखावे ।
कुछ तो अपने, पिया संग में,
देखो रास रचावे ॥

रहि-रहि,रहि-रहि,बिजली चमके,
नयन नीर, भरि आवे ।
दिन तो जइसे-तइसे, कटि जाये,
पर बैरिनि रात सतावे ॥

नीक न लागे, ये सावन मोहें,
ना ही दादुर की बोली ।
जेठ दुपहरी ये सब लागे,
तुम बिन हमें ये गोरी ॥

आग लगाए ये सावन,
तुझे क्या बतलाऊं गोरी ।
रहि-रहि के ये बदरा बरसे,
याद सताये तोरी ॥

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
06-08-2013,tuesday,9:45pm,
pune,m.h.


रो रही हमारी भारत माता

रो रही हमारी भारत माता,
अपने बेटों की, कुर्बानी पर
क्रोध से ये पीस, रही है दाँत,
हमारे दुश्मनों की, नादानी पर

अब बहुत सह लिया है हमने,
अब और अधिक, बर्दास्त नही
वे मार रहे हमारे, बेटों को,
और हम कहते, कोई बात नही

ये दिल है माँ का, कोई पत्थर तो नही,
जो हर जख्मों को, सहता जाए
अपने बेटों की, आहुति पर,
ये चैन से तो, रह पाए

हम मित्रता, चाहते हैं उनसे,
पर दुश्मनी तो, उनकी आदत है
वे हसते रहते हैं, हम पर,
कि देखो कैसा, ये भारत है

हर एक की कोई, सीमा होती है,
और वे सीमा को, अपने लांघ रहे
वहां की निकम्मी सरकारें,
हमसे युद्ध हो चाह रहे

पर हम नहीं चाहते, युद्ध हो उनसे,
वे पहले से तो, हैं मरे हुए
वे गाल बजाते हैं, रह-रह कर,
पर अन्दर से, हमसे डरे हुए

जब हम नहीं चाहते, युद्ध हो उनसे,
तो हम उनसे सारे, रिश्ते बंद करें
वे मित्र हमारे, कभी हो सकते ही नही,
फिर उनसे हम क्युं, कोई सम्बन्ध करें
वे मित्र हमारे, कभी हो सकते ही नही,
फिर उनसे हम क्युं, कोई सम्बन्ध करें....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
08-08-2013,thursday,2am,
pune.m.h.