Monday 3 October 2011

जो वतन पे शहीद हो जाते हैं

क्या कभी हमने सोचा है उनके लिए भी,
जो वतन पे शहीद हो जाते हैं !
अपने प्राणों कि आहुति देकर,
वे भारत मां की लाज बचाते हैं !!

जान हथेली पे लेकर,
वे, हम सबकी रक्षा करते हैं !
दुश्मनों के साथ मे लड़ते-लड़ते,
हंसते हुए वे मरते हैं !!

रेगीस्तान कि तपती गर्मी हो,
या बर्फ़ीली ठंड हवाएं हों !
दुर्गम पहाड़ हों या नदिया,
गहरे समुद्र या घटाएं हो !!

ऐसे भी दिन कभी आते हैं,
जब खाने-पिने कि कोई आश नही !
आंखो मे नींद नही आती,
और दुश्मनों का कोई विश्वाश नही !!

अपने घर-परिवार को छोड़के वे,
हम सब की रक्षा करते हैं !
उनकी यादों को अपने सीने मे,छिपा,
उनकी खुशहाली कि कामना करते है !!

धन्य है ऐसी माताएं,
जिन्होने ऐसे वीरों को जन्म  दिया !
ऐसी अमर सुहागिनें ,भी धन्य हैं,
जो अपने सुहाग को देश रक्षा मे  लगा दिया !!,



मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक-०१/१२/२०००,शुक्रवार, रात- १०.३०,बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)


रिश्वत तेरे कितेने रूप

रिश्वत तेरे कितन रूप,
कभी छांव कभी धूप..

कभी मिठाई के डब्बे मे,
तू आकर हमको मिल जाता !
तुझको पाने से दोस्त,
मुर्झाया चेहरा खिल जाता !!

कभी तू मिलता ऊपहार स्वरूप में !
कभी तू मिलता चिकन शराब के रूप में !!

कभी तू मिलता बाइक कार के रूप में !
कभी तू मिलता घर मकान के रूप में !!

तू जादा मिलता , नोटों के बंडल में !
कभी पत्नी के गहने कभी उसके कानो के कुंडल में !!

कभी डोनेशन मे भी तू मिल जाता !
कभी प्रमोशन मे भी तू मिल जाता !!

कभी तू मिलता है अय्याशी में !
कभी तू मिलता है धन के राशी में !!

हे रिश्वत तेरे कई प्रकार !
बेइमानी-घूस भ्रष्ट्राचार !!

तेरा वर्णन नही कर सके हम यार !
तुझको सलाम है बार-बार !!

रिश्वत तेरे कितने रूप........

मोहन श्रीवास्तव(कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक- ०१/१२/२०००, शुक्रवार, सुबह- .४० बजे,

चंद्रपुर(महाराष्ट्र)