ईंतजार की घड़ियां लम्बी होती हैं,
खास तौर से अपनों का !
दिन दस दिन कि बात ही क्या,
जब बात हो बारह महिनों का !!
नए साल का माह जनवरी,
दे गया हमको सर्दी !
इससे भी बढ़ कर माह फ़रवरी,
निकला बड़ा बेदर्दी !!
मार्च माह की गुलाबी ठंडक,
और कर दिया दिवाना होली !
अप्रैल माह का हाल मत पूछो
जो गर्मी कि थैली खोली !!
मई-जून की पड़ती गर्मी से,
तन-मन तो मेरा बेहाल हुआ !
जुलाई-अगस्त की रिम-झिम बरिस से,
दिल मे मेरे भुचाल हुआ !!
माह सितम्बर का धूप-छांव,
और अक्टूबर मे आई दिवाली !
नवंबर-दिसम्बर का मध्यम जाड़ा,
पर पिया बिन दिल है मेरा खाली !!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचना का दिनांक-६/११/२०००,सोमवार शाम ७.०५ बजे
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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