रिश्वत तेरे कितन रूप,
कभी छांव व कभी धूप..
कभी मिठाई के डब्बे मे,
तू आकर हमको मिल जाता !
तुझको पाने से ऐ दोस्त,
मुर्झाया चेहरा खिल जाता !!
कभी तू मिलता ऊपहार स्वरूप में !
कभी तू मिलता चिकन व शराब के रूप में !!
कभी तू मिलता बाइक व कार के रूप में !
कभी तू मिलता घर व मकान के रूप में !!
तू जादा मिलता , नोटों के बंडल में !
कभी पत्नी के गहने व कभी उसके कानो के कुंडल में !!
कभी डोनेशन मे भी तू मिल जाता !
कभी प्रमोशन मे भी तू मिल जाता !!
कभी तू मिलता है अय्याशी में !
कभी तू मिलता है धन के राशी में !!
हे रिश्वत तेरे कई प्रकार !
बेइमानी-घूस व भ्रष्ट्राचार !!
तेरा वर्णन नही कर सके हम यार !
तुझको सलाम है बार-बार !!
रिश्वत तेरे कितने रूप........
मोहन श्रीवास्तव(कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
रचनांकन दिनांक- ०१/१२/२०००, शुक्रवार, सुबह- ४.४० बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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