Friday 25 November 2011

हस-हस के तुम जिवो सब यार

हस-हस के तुम जिवो मेरे यार,रो-रो के जीना नही !
खुश हो करके काम करो सब ,डर-डर के रहना नही !!

अपने से जैसा हो सके यारों,सबका करो उपकार !
चाहे कोई जैसे भी हो सब ,उनसे करो तुम प्यार !!

अपनी मेहनत और लगन से ,अपने करो तुम काम !
चाहे कितनी बाधा आए,आधी या तुफ़ान !!

सपने सजाए होंगे तुम अपने,उन्हे तुम पुरा करो !
आलस और अभिमान को अपने,मन से दूर करो !!

जीवन है थोड़ा, काम है जादा,वक्त गुजरता जाए !
तुम पर टिकी है निगाहें सभी की,और बड़ी आशाएं !!

हस -हस के तुम जीवो मेरे यार, रो-रो के जीना नही !
खुश हो के काम करो सब,डर-डर के रहना नही !!...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)





दिनांक-१७//१९९१ ,वुद्धवार , सुबह .५५ बजे,

एन.टी.पी.सी.दादरी .गाजियाबाद (.प्र.)

गजल(प्यार ये ऐसी चीज है)


प्यार ए ऐसी चीज है ,जिसका नही है मोल !
ये ऐसा तराजू है यारों, जिसका नही है तोल !!

इस रोग का न कोई ठिकाना,कब किसको लग जाय !
इसकी कोई दवा नही है,कब किससे छिन जाय !!

कोई कितना अपने दिल को संभाले, फ़िर भी करता ये वार !
अमिर-गरीब-उंचा-निचा,देखे नही ये प्यार !!

हीर-रांझा-लैला-मजनू,दिवाने सिरी-फ़रहाद !
इसके किस्से अनेकों है ऐसे,जिसे करते सब याद !!

इसके खेल अनेकों है यारों,दो दिल कब बिछुड़ जाय !
ये ऐसा नाजुक चीज भी है, जो छुने से टूट जाय !!

मैने भी इक से प्यार किया था,जो ना मुझे वो मिला !
वो प्यार का फ़ूल ऐसा था मेरा,जो ना कभी भी खिला !!

आखिर मे मेरा यही दुआ है,जो भी करे कोई प्यार !
सबको सब की अमानत मिले, और सब को सब का प्यार !!

प्यार ये ऐसा चीज है,जिसका नही है मोल !
प्यार इक ऐसा तराजू है यारों,जिसका नही है तोल !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१५//१९९१ ,सोमवार,सुबह , .३५ बजे,

एन.टी.पी.सी.दादरी ,गाजियाबाद (.प्र.)




 

भजन(ऐ री सखी जिसे देखा है आज)

री सखी जिसे देखा है आज,मेरा दिल ले गया, मेरा दिल ले गया !
तन पे पिताम्बर ,गले मे हार,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी....

जब से देखा है उसको हमने,मन नही लगता है कोई काम को करने !
नही है मुझे अपना होशो-हवास,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

अपनी बसुरिया कैसे बजाता,हमको सखी वो खूब रिझाता !
कहते थे सब उसको राधा का श्याम,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

वॄंदावन मे वो रास रचाता,ग्वालों के बीच मे वो धेनु चराता !
वो तो सखी है पूरण काम, मेरा दिल ले गया मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

उसकी ऐसी मोहिनी मूरति,कभी देखी ऐसी सावली सुरति !
कहते थे सब उसको माखन चोर,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

मै सखी अब दिन रात तड़पती,उसके दरश को अखियां तरसती !
जल बिन मछली जैसा मेरा हाल,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

मै तो उसकी प्रेम दिवानी,मेरे आखो से बहते नित पानी !
मै तो जाउंगी उसके ही पास,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

भुख प्यास नही लगती मुझको,कैसे भी पा जाती मै उसको !
कहा खो गया है मेरा श्याम, मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

उसका श्याम सलोना चेहरा,माथे पे मोर-पंख का सेहरा !
वो मुझे याद आए दिन रात,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
री सखी...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१४//१९९१,
रविवार,शाम-.१२ बजे,

एन.टी.पी.सी.दादरी,गाजियाबाद (.प्र.)