ऐ री सखी जिसे देखा है आज,मेरा दिल ले गया, मेरा दिल ले गया !
तन पे पिताम्बर ,गले मे हार,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी....
जब से देखा है उसको हमने,मन नही लगता है कोई काम को करने !
नही है मुझे अपना होशो-हवास,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
अपनी बसुरिया कैसे बजाता,हमको सखी वो खूब रिझाता !
कहते थे सब उसको राधा का श्याम,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
वॄंदावन मे वो रास रचाता,ग्वालों के बीच मे वो धेनु चराता !
वो तो सखी है पूरण काम, मेरा दिल ले गया मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
उसकी ऐसी मोहिनी मूरति,कभी न देखी ऐसी सावली सुरति !
कहते थे सब उसको माखन चोर,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
मै सखी अब दिन रात तड़पती,उसके दरश को अखियां तरसती !
जल बिन मछली जैसा मेरा हाल,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
मै तो उसकी प्रेम दिवानी,मेरे आखो से बहते नित पानी !
मै तो जाउंगी उसके ही पास,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
भुख प्यास नही लगती मुझको,कैसे भी पा जाती मै उसको !
कहा खो गया है मेरा श्याम, मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
उसका श्याम सलोना चेहरा,माथे पे मोर-पंख का सेहरा !
वो मुझे याद आए दिन रात,मेरा दिल ले गया,मेरा दिल ले गया !!
ऐ री सखी...
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-१४/७/१९९१,
रविवार,शाम-५.१२ बजे,
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