Tuesday 19 November 2013

ईंषान से हर जीव को,प्यार चाहिये

ईंषान से हर जीव को,प्यार चाहिये
नफरत नहीं उसको तो,दुलार चाहिये

भगवान ने बनाया, हर जीव यहां पे
ईंषान,पशु आदि-आदि,कीट यहां पे

सबको जीने-रहनें का,अधिकार दिया है
हर किसी को कुछ कुछ, आधार दिया है

ईंषानियत जिनमें नहीं,वो ईंषान नहीं है
ईंषान और दानवों की,पहचान यही है

अभिमान तो ईंषान को,कभी करना चाहिये
बेवजह कभी किसी से, लड़ना चाहिये

अमीर या गरीब हों,वे ईंषान पहले हैं
सब कोई देखो प्यार से, पलते और बढ़े हैं

सब जीवों पे दया करो,ये हमारा धर्म हो
हिंसा,फसाद,चोरी ना,जैसा अधर्म  हो

ये चार दिन की जींदगी,हंस कर बिताइये
ईंषानियत के धर्म को,हर पल निभाइये

ईंषान से हर जीव को,प्यार चाहिये
नफरत नहीं उसको तो,दुलार चाहिये

" प्रिय मित्रों,

सादर प्रणाम व नमस्ते. 

यह मेरी 800वीं रचना है,जो मैं ईंषानियत पर लिख कर आप सबको समर्पित कर रहा हूं,आप सब के स्नेह के लिये मैं आप सब का आभार प्रकट करता हूं, मेरी अधिक से अधिक रचनाओं को पढ़ने के लिये कृपया मेरे ब्लाग पर पधारने का कष्ट करें ---- * धन्यवाद * ----

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-11-2013,Monday,02:00 PM,(800),

Pune,Maharashtra.