हम भी कभी बने थे मंत्री,
जब हम रोज सुबह उठ जाते थे!
साहब जी,सर जी के अभिवादन से,
लोग हमारे कदमो मे शीश झुकाते थे!!
चाय की प्याली तब मुझे पसंद नही थी,
तब हम काफ़ी कि प्याली पिते थे!
खुब चिकन-तंदूरी खाके,
अंग्रेजी शराब हम पीते थे!!
कारों का काफ़िला चलता था,
लोग हमारी जै-जै कार बुलाते थे!
हमारे झुठे वादों को सुनकर ,
लोग खुब तालियां बजाते थे!!
रिश्वतों का काम हम पहले करते थे,
बे-रिश्वत का बाद मे!
मैने कई यादगार बनवाये,
उन रिश्वत-खोरों कि याद मे !!
अनाथाश्रम-व विधवाश्रम को,
हम जी भर के चंदा देते थे!
अपने ऐसे कारनामों से,
लोगों का दिल हम जीत लेते थे!!
हिंदू-मुस्लिम मे दंगे भड़काकर,
और उंची-निची जातियों मे नफ़रत फ़ैलाते थे!
फ़िर उनके घावों पर मरहम लगाकर,
हम उनके आशानी से वोट हथियाते थे!!
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-०९/११/२०००,बॄहस्पतिवार ,रात-०१.१० बजे,
चंद्रपुर(महाराष्ट्र)
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