नारी होती है महान,
इसमे किसी को भ्रम हो नही ।
हर रूप मे वो करती है उपकार,
और वो किसी से कम है नही ॥
बचपन मे करती है उछल -कूद,
और वो सब की प्यारी है ।
जब बड़ी हुई तो वो सबका रखती है ख्याल,
और वो मां-बाप की बहुत दुलारी है ॥
हुआ बिवाह जब उसका तो,
तो वह पति के प्राणों की प्यारी है ।
कुछ दिन बाद हुए जब बच्चे,
और वो मां कहलाने की अधिकारी है ॥
भाभी,मौशी व देवरानी,
वह ननद,जेठानी है कहलाती,
दीदी-दादी-मामी-नानी,
कई नामों से वो है बुलाई जाती ॥
वो है ममता की सागर,
हम कर सकते उसका बखान नही ।
उसे हम सब को देना है आदर,
उस जैसा कोई महान नही ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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२४-४-२०१३,बुद्धवार,१.३० दोपहर,
पुणॆ,महा.
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