बुझदिल न बनो, हिंदुस्तानी,
दुश्मन कब से हमे, ललकार रहा ।
आतंक वादियों के, वेष मे घुम-घुम कर,
वह हमे मौत की, घाट उतार रहा है ॥
वह हम पे जहर, उगल रहा है,
और हम शान्ती की, बातें करते हैं ।
वह मासूमों की, जींदगी से खेल रहा,
और हम क्रान्ती, की बातें करते हैं ॥
अब बहुत सो, लिये हैं हम सब,
हमें नींद से, जागना जरुरी है ।
दुश्मन को, उसी की भाषा मे,
सबक सिखाना, जरुरी है ॥
गिदड़ नही हम, शेरे दिल हैं,
अपने देश के लिये, शीश कटा देंगे ।
बुरी नजर कोई, डाले हम पर,
हम उनकी आखें, निकाल लेते ॥
बीर शिवा जी,आजाद, भगत सिंह जैसे,
वीरों की हम सब, सन्तानें हैं ।
रानी लक्ष्मी बाई, जैसी माताएं हैं,
और हम वतन के, दीवाने हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
18-01-2000,tueesday,6.10am,
chandrapur,maharashtra.
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