भ्रष्टाचार की गर्त मे, डुबा भारत,
आज कितना, मजबुर हुआ है ।
दीमक जैसे, भ्रष्टा चारियों से,
आज कितना, कमजोर हुआ है ॥
राह-जनी तथा, लूट-पाट,
आदमी को, आदमी काट रहे ।
वोटों के लिये ये, राजनीतिक दल,
आपस मे, हमको बांट रहे ॥
विधान सभा से, संसद तक,
नित, हाथा-पाई होती है ।
सत्ता के दलालों को, देख-देख कर,
भारत की, आत्मा रोती है ॥
बे कसुरों को, सजाएं दी जाती,
अपराधी सरे आम, घुमते हैं ।
दिन-दहाड़े, बलात्कार कर के वो,
मस्ती के साथ, झुमते हैं ॥
मजहब के नाम, पर आपस मे,
इक-दूजे के, खून के प्यासे हैं ।
ईश्वर-अल्लाह से, बढ़ कर अपने को,
वे ईन्सानियत का, रहनुमा बताते हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-12-1999,friday,6.25pm,
chandrapur,maharashtra.
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