Monday 19 February 2024

अंधेरा सदा कायम रहे

इस अन्तहीन अधिकार में,
कहीं भी प्रकाश की किरण,
नजर नही आती, 
कहीं दूर कोई किरण दिखती,
मगर वो भी,
इस अन्तहीन तिमिर में,
सहमी सी समा जाती,
इस तम कुण्ड में,
चारों तरफ भयानक चीत्कार है,
लाचारों का करुण क्रन्दन,
अन्तर्मन मे उठता,
दुर्बलों की पुकार है,
इस गहन अन्धकार मे,
भुखे भेड़ियों के झुण्ड,
बैठे हैं घात लगाये,
उन कमजोरों का,
खुन पिने के लिये,
जिनके तन मे खुन की जगह,
सिर्फ पानी है,
पर ये भुखे भेड़िये,
उन पर टूट पड़ते,
उनके अस्थि पंजरों को,
अपने दानवी दातों से,
चबा जाते,
और बोल उठते वह,
अपने आप से कि,
अंधेरा सदा कायम रहे .........

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
10-02-2000,thursday,9.25am,
chandrapur,maharashtra.

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