ये मदमस्त बहारों का मौसम,
तन को मेरे आग लगा रहा है ।
ये बिरह से व्याकुल दिल में,
प्रणय वेदना जगा रहा है ॥
वर्षा की बूंदों से बिह्वल धरती,
सुरज की गर्मी चाह रही ।
चम्पा-चमेली व रात रानी,
जैसे गुलाब को मांग रही ॥
दूर गगन मे काले बादल,
बिजली को देख इतरा रहे हैं ।
झर-झर करते ये झरनें,
पानी को देख बौरा रहे हैं ॥
कामदेव मानों रति को,
प्रेम का पाठ पढ़ा रहे हैं ।
बेला रानी के फूलों की ओर,
गेंदराज जी डाल बढ़ा रहे हैं ॥
पूनम के चाँद का ये उजाला,
जैसे सुरज का ताप लग रहा हो ।
रह-रह के पवन कर रहा ईशारा,
जैसे वो हम पर हस रहा हो ॥
रह-रह के पवन कर रहा ईशारा,
जैसे वो हम पर हस रहा हो..........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
10-08-2013,6.30pm,saturday,(717)
pune,maharashtra.
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