किसी बाप की, बेटी है वो,
तो किसी भाई की, बहना है ।
किसी-किसी के, आंगन की गुड़िया है वो,
तो किसी माँ का, गहना है ॥
बड़े प्यार-दुलार से, पली-बढ़ी,
और बचपन से, पाई तरुणाई ।
नयी उमंगें, दिल में लेकर,
अपने साजन के, घर आई ॥
मां-बाप भी, लड़के वालों को,
अपनी औकात से, जादा दहेज दिये ।
अपनी फूल से भी, नाजुक बिटिया को,
रोते-रोते हैं, बिदा किये ॥
पर कुछ लोग, दहेज की खातिर,
जींदा ही उन्हें, जलाते हैं ।
उन मासुमों के, सपने बखराकर,
उनपे दहेज का, कफन चढ़ाते हैं ॥
अपने बेटियों के, जैसा ही,
अपनी बहुओं को, भी प्यार करो ।
उन मासुमों को, अपना बना के,
उनके सपनें, साकार करो ||
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
24-02-2000,thursday,7:10pm,
chandrapur,maharashtra.
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