Monday 19 February 2024

पर कुछ लोग दहेज के खातिर

किसी बाप की, बेटी है वो,

तो किसी भाई की, बहना है ।

किसी-किसी के, आंगन की गुड़िया है वो,

तो किसी माँ का, गहना है ॥



बड़े प्यार-दुलार से, पली-बढ़ी,

और बचपन से, पाई तरुणाई ।

नयी उमंगें, दिल में लेकर,

अपने साजन के, घर आई ॥



मां-बाप भी, लड़के वालों को,

अपनी औकात से, जादा दहेज दिये ।

अपनी फूल से भी, नाजुक बिटिया को,

रोते-रोते हैं, बिदा किये ॥



पर कुछ लोग, दहेज की खातिर,

जींदा ही उन्हें, जलाते हैं ।

उन मासुमों के, सपने बखराकर,

उनपे दहेज का, कफन चढ़ाते हैं ॥



अपने बेटियों के, जैसा ही,

अपनी बहुओं को, भी प्यार करो ।

उन मासुमों को, अपना बना के,

उनके सपनें, साकार करो ||

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
24-02-2000,thursday,7:10pm,
chandrapur,maharashtra.

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