तितलियां हैं तितलियां, देखो ये तितलियां ।
रह-रह के हमपे बिजली, गिराती हैं तितलियां ॥
कभी फूल-फूल पे तो, आती हैं तितलियां ।
कभी सब के मन को, देखो भाती हैं तितलियां ॥
जीवन में कई रंग, भरती हैं तितलियां ।
मौसम को देख-देख, बदलती हैं तितलियां ॥
खुशबू के पीछे खूब, ये जाती हैं तितलियां ।
हर मोड़ पे ये खूब, रिझाती हैं तितलियां ॥
आती कहां-कहां से, देखो ये तितलियां ।
ललचाती इस जहां को,देखो ये तितलियां ॥
अपनों से कभी खूब, लजाती हैं तितलियां ।
दामन में कभी गैर के, जाती हैं तितलियां ॥
अपना दिवाना सबको, बनाती है तितलियां ।
सपनों को देखो खुब, सजाती है तितलियां ॥
कभी रस की चाह मे, फस जाती तितलियां ।
अपने कभी ये जाल मे, उलझाती तितलियां ॥
तितलियां हैं तितलियां, देखो ये तितलियां ।
रह-रह के हमपे बिजली, गिराती हैं तितलियां ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
11-08-2013,sunday,3ppm,(718),
pune,maharashtra.
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