किमतें बढ़ाने में, होड़ लगी है है,
इन हिलती-डुलती, सरकारों में ।
जहां रातो-रात, किमतें बढ़ा देते,
ऐसी चलती-फिरती, सरकारों में ॥
इनको चुनने के, लिये जहां,
अरबों रुपये, बहाये जाते ।
हम बेकसुरों के, आंसू से,
फिर इन्हें ताज, पहनाये जाते ॥
वोटों का उपहार, हम देते हैं इन्हें,
ये हमें मंहगाई की, भेंट चढ़ा देते ।
रोजगार दिलाने के, नारे देकर,
ये हमें और, बेरोजगार बना देते ॥
हम कई वस्तुओं मे, कटौती कर,
फिर अपना बजट बनाते हैं ।
पर किमतें, बढ़ाने वाले ये,
हमारे बजट को, आग लगाते हैं ॥
अभी रसोंई गैस की, कीमतें बढ़ाकर,
और ये हमपे, एहसान जता रहे हैं ।
अभी डीजल-पेट्रोल के, दाम नहीं बढ़ेंगे,
ये हमारे मरने पर, कफन पहना रहे हैं ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
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