तुम होगी क्या, ऐसी ही प्रिये,
जैसा मैने सोचा है ।
होगी क्या, तुम वैसी ही,
जैसा दिल में, मैने देखा है ॥
तुम कली, महकते फूलों की,
मुखड़ा तो, चाँद जैसा होगा ।
रूप तुम्हारा संगमर्मर,
अंदाज निराला, तो होगा ॥
मुस्कान तुम्हारा, खिलता गुलाब,
हंसना तो, सितारों सा होगा ।
आंखें होंगी, मृगनयनी सी,
और जुल्फ, बहारों सा होगा ॥
होठों का रंग, गुलाबी सा,
नाजुक सा, कलाई तो होगा ।
खन-खन चूड़ी, बातें करती,
जो धड़कन को, बढ़ाता तो होगा ॥
कानों के झुमके, झिलमिल करते,
और रंग बदामी, सा होगा ।
पावों में पायल, की छन-छन,
और नाक में, नथिया तो होगा ॥
राहों में नागिन,
सी चलती,
परियों सा रूप,
बदलती होगी ।
हर अदा, खुबसुरत होगा,
और फूलों सा,
खिलती होगी ॥
तुम होगी क्या, ऐसी ही प्रिये,
जैसा मैने सोचा है ।
होगी क्या, तुम वैसी ही,
जैसा दिल में, मैने देखा है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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