हो गया है प्यार मुझे, इक अजनबी से ।
मुझे ये नही पता कि वो, क्या समझती है ॥
मुस्कान उसकी मेरे, दिल मे समा गई ।
वो परी है जैसे कोई, धरती पे आ गई ॥
पलकें हैं उसके ऐसे ,-जैसे दिन व रात हों, ।
रूप है ऐसे की ,खिलता गुलाब हो ॥
भौहें तो उसकी यारों,दुईज के चाँद हैं ।
आखें हैं नशिली,जैसे पीया शराब हो ॥
ज़ुल्फें हैं उसकी ऐसे ,जैसे घटा हो छा गया ।
हर इक अदा तो उसका, बिजली गिरा रहा ॥
राहों मे जब वो चलती,तो लोग गुजरते हैं पास से ।
लगता है ऐसे उनको जैसे ये मेरी तलाश है ॥
हो गया है प्यार मुझे इक अजनबी से ।
मुझे ये नही पता कि वो क्या समझती है ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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२५-४-२०१३,प्रातः१०.३० बजे,बृहस्पतिवार,
पुणे ,महा.
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