बनना है तो, चन्दन सा बनों,
ना बनना, कुल्हाड़ी सा ।
बोलो तो सत्य व, मधुर बोलो,
ना असत्य कभी, वाणी का ॥
चन्दन को काटता, है कुल्हाड़ी,
पर चन्दन का उसे, खुशबू लगता ।
कुल्हाड़ी तो आग में, पीटा जाता,
पर चन्दन तो, मस्तक पे सजता ॥
बनना है तो, दीपक बनना,
जो खुद जल कर, प्रकाश को है देता ।
साथ करो, सज्जनों का सदा,
नहीं तो दुर्जन तो, दु:ख ही देगा ॥
किसी तरह का हिंसा,
ये धर्म नहीं, ये पाप है ।
पाप का सजा, मिलता है हमें,
पर करते हैं, और हम पाप हैं ॥
कभी दुसरों के, दुःख को,
उनको अपने, जैसा ही जानों ।
खुशी मिलेगा, इससे तुम्हें,
यह सत्य बचन, मेरा मानों ॥
अहंकार,अभिमान, को तज कर,
मन को अच्छे, कामों में लगावो ।
बद्दुआ नहीं लो, कभी किसी का,
दुआ सदा ही पावो ॥
बद्दुआ नहीं लो, कभी किसी का,
दुआ सदा ही पावो.......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavypushpanjali.blogspot.com
21-07-2013,sunday,11pm,
pune,maharashtra.
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