नफरत सी हो गई है,इस दुनिया को देख के ।
डरता है दिल हमारा, लोगों को देख के ॥
नफरत सी हो.........
हमने बुलाया पा उन्हें, बिठाया था प्यार से ।
खंजर उतार दी है मेरे, पिछे के वार से ॥
नफरत सी हो.........
वो तो पिलाए जाम मगर, जहर को दे गये ।
हमने जलाये दीप मगर, वो तो बुझा गये ॥
नफरत सी हो.........
कैसे यकीन करें हम, झूठे जमाने पे ।
सच बोला उनको तो हम, हैं उनके निशाने पे ॥
नफरत सी हो.........
सच पे रहे तो आखिर,हमें दूर कर दिये ।
ईमान बेचने पे हमे, मजबूर कर दिये ॥
नफरत सी हो.........
सच्चाई की तो राह पे कैसे कोई चले ।
कांटे ही कांटे राह में, लोगों से है मिले ॥
नफरत सी हो गई है,इस दुनिया को देख के ।
डरता है दिल हमारा, लोगों को देख के ॥
नफरत सी हो.........
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
13-02-2000,sunday,5.30pm,
chandrapur,maharshtra.
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