Monday 19 February 2024

कजरी ( देखो सावन त रहि-रहि बउरात बा ना )

देखो सावन रहि-रहि बउरात बा ना,
भादों मुस्कात बा ना.........
देखो सावन रहि-रहि........

घटा छाये घनघोर।पानी बरसे चारों ओर...
देखो नदी,ताल,तलाई।मिल के दिल में है हर्षाई...
देखो धरती पे हरियर बहार बा....
भादों मुस्कात बा ना...
देखो सावन मुस्कात बा ना...

करिया बादर जी डरवावे।पिया याद बहुत ही आवे....
झम-झम बरस रहे ये बदरा ।बिरहा के तन में आग लगावे...
देखो बिरहन मन उदास बा.....
भादों मुस्कात बा ना......
देखो सावन मुस्कात बा ना...

पिया के संग में खुश है गोरी।बांध के प्रेम की डोरी॥
करके सोलह श्रृंगार।झुला झूल रही हैं डार॥
देखि पिया के बहुतइ इतरात बा...
भादों मुस्कात बा ना......
देखो सावन मुस्कात बा ना...


खुश हो रहे किसान।दिल में बहुतइ अरमान॥
अच्छी फसल लगाये आश।मन में बहुतइ विश्वाश॥
देखो लइकन टोली दुलरात बा....
भादों मुस्कात बा ना......

देखो सावन रहि-रहि बउरात बा ना,
भादों मुस्कात बा ना.........
देखो सावन रहि-रहि........

मोहन श्रीवास्तव(कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com,
28-07-2013,saturday,14:15pm,
pune,maharashtra.



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