अब आ गया जमाना, चमचों का,
जहां हर जगह ही, चमचे मिल जाते ।
मेहनत की कमाई, इन्हें मंजूर नहीं,
चमचे की कमाई, से ये खाते ॥
ये मिल जाते हैं, सभी जगह,
शहर में हो या, देहातों में ।
रोजी,रोजगार,नौकरी में या,
सत्ता के, गलियारों में ॥
एम.पी,एम.एल.ए.,
का टिकट भी देखो,
पहले मिलता है, चमचों को ।
चमचे से बन, जाते हैं मंत्री,
और नौकरी में, पदोन्नति चमचों को ॥
ईनाम,पुरष्कारों, में भी पहले,
चमचों का ख्याल, रखा जाता ।
चाहे वह उसके, योग्य न हो,
पर उन्हें सम्मान, आराम से मिल जाता ॥
जो चीज न हासिल हो, मेहनत से,
कभी-कभी वह, चमचागिरी से मिल जाता ।
पर नफरत है, मिलती चमचों को,
जिससे उनका सर, शर्म से है झुक जाता ॥
अब आ गया जमाना, चमचों का,
जहां हर जगह ही, चमचे मिल जाते ।
मेहनत की कमाई, इन्हें मंजूर नहीं,
चमचे की कमाई, से ये खाते ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-07-2013,sunday,10:30pm,
pune,maharashtra.
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