Monday 19 February 2024

गजल (हम तो समझे थे जहर का प्याला)

हम तो समझे थे जहर का प्याला,वे तो अमृत हमें पिला के गये ।
हम तो समझे थे मौत ही उनको, हमें मरते हुए जिला वो गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

हम तो उन्हें देखते थे नफरत से, दिल मे मेरे प्यार वो जगा के गये ।
हम उन्हें जानते थे पत्थर दिल, अपने आंसू से वो, भिगा के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

वो तो रहते रहे मय-खाने में,मेरा पीना वे तो छुड़ा के गये ।
हम तो टूटा हुआ सा दिल समझे, वो तो दिल से दिल को जुड़ा के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

हम तो रहते थे दूर ही उनसे,वो तो मुझको दिवाना कर के गये ।
हम तो समझे थे उनको बेगाना, वो तो बाहों में हमको भर के गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

उनका मुस्कराता हुआ सा चेहरा, गम को अपने दिल मे छिपा के गये ।
हम तो समझे थे गम दे रहे हमको, अपने गम से उसे मिलाते रहे ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

वो तो हमसे हैं आज दूर कहीं, अपनी यादें हमें दिलाते गये ।
हम तो राहों में हैं खड़े उनके, वो तो अपने को ही लुटाते गये ॥

हम तो समझे थे जहर का प्याला,वे तो अमृत हमें पिला के गये ।
हम तो समझे थे मौत ही उनको, हमें मरते हुए जिला वो गये ॥
हम तो समझे थे जहर का.....

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
19-02-2000,saturday,11.50am,
chandrapur,maharashtra.

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