वोटों के लिये, ये सरकारें,
हमें कई उपहार, दिलाते हैं ।
पर शायद हमको, पता नही,
ये हमपे मंहगाई का, भार चढ़ाते हैं ॥
खुश होते हम इन, उपहारों से,
पर ये हमारे, पैसों से ही दिये जाते ।
विभीन्न तरह के, टैक्स लगा कर,
हमपे एहसान, किये जाते ॥
इन्हीं उपहारों में, सस्ता अनाज,
व कई तरह की, ऋण माफी है ।
अल्प संख्यकों को, दी जा रही सौगात,
और कइयों की, निःशुल्क पढ़ाई है ॥
चाहे किसी तरह के, सरकारी दान,
कोई ये अपने, पैसों से नहीं देते ।
तुष्टिकरण की नीति से ये,
वोट हमारे ले लेते ॥
यदि देना है, दान इन्हें तो,
जरुरत मंदों को, ही दान दिया जाये ।
धर्म जातियों से हटकर,
गरीबों का पहचान, किया जाये ॥
भर रहे तिजोरी, अपना ये,
इनपे मंहगाई से, फर्क नही पड़ता ।
मर रहा, आम आदमी है यहां,
उनके हित की, बात कौन करता ॥
मर रहा, आम आदमी है यहां,
उनके हित की, बात कौन करता......
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
20-07-2013,saturday,3am,
pune,maharashtra.
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