Monday 19 February 2024

मर रहा आम आदमी है यहां

वोटों के लिये, ये सरकारें,

हमें कई उपहार, दिलाते हैं ।

पर शायद हमको, पता नही,

ये हमपे मंहगाई का, भार चढ़ाते हैं ॥



खुश होते हम इन, उपहारों से,

पर ये हमारे, पैसों से ही दिये जाते ।

विभीन्न तरह के, टैक्स लगा कर,

हमपे एहसान, किये जाते ॥



इन्हीं उपहारों में, सस्ता अनाज,

व कई तरह की, ऋण माफी है ।

अल्प संख्यकों को, दी जा रही सौगात,

और कइयों की, निःशुल्क पढ़ाई है ॥



चाहे किसी तरह के, सरकारी दान,

कोई ये अपने, पैसों से नहीं देते ।

तुष्टिकरण की नीति से ये,

वोट हमारे ले लेते ॥



यदि देना है, दान इन्हें तो,

जरुरत मंदों को, ही दान दिया जाये ।

धर्म जातियों से हटकर,

गरीबों का पहचान, किया जाये ॥



भर रहे तिजोरी, अपना ये,

इनपे मंहगाई से, फर्क नही पड़ता ।

मर रहा, आम आदमी है यहां,

उनके हित की, बात कौन करता ॥

मर रहा, आम आदमी है यहां,

उनके हित की, बात कौन करता......



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

20-07-2013,saturday,3am,

pune,maharashtra.

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