Monday 19 February 2024

राजा-रानी ( दो युगल प्रेमियों की कहानी )

दो दिलों के आपस मे मिलने से ,फ़ूलों की महक सी आती है !

पर दोनो के आपस मे बिछुड़ने मौत की घुटन सी आती है !!



दो युगल प्रेमियो का किस्सा ,मै अपनी जुबा से सुनाता हूं ।

वे प्रेमी नही प्रेम के संगम थे, मै उनके गीत सुनाता हूं ॥



उस माया रुपी नगरी मे, वे दोनो प्रेमी रहते थे ।

अपने अपने खयालों, वे दोनो खोए रहते थे ॥



प्रेमी का नाम था राजा, प्रेमिका को कहते थे रानी ।

दोनो ही आधुनिक बिचारों के, पढ़े-लिखे और ग्यानी ॥



राजा के यहा गरीबी थी, पर रानी के दौलत थी बेशुमार।

राजा का पिता दरबान था, रानी के यहा ही था नौकर ॥



राजा कर रहा था एम.काम., रानी ने भरा था बी.ए का फ़ार्म ।

एक ही कालेज के दोनो क्षात्र थे,रखते थे बस काम से काम ॥



दोनो ही शख्श सजीले थे, लगते थे जैसे कोई शबनम ।

राजा पढ़ने मे होशियार, रानी भी नही थी उससे कम ॥



उस दिन बादल घिर आए थे, आंधी भी आने वाली थी ।

क्लास खत्म हुए दोनो के, रानी भी जाने वाली थी ॥



रानी क्लास से बाहर आई, चलने लगी हौले-हौले ।

उसके पिछे दो तीन युवक, चलने लगे हौले-हौल ॥



रानी के घर का कुछ दूर रास्ता, जंगल से होकर गुजरता था ।

उसका मन न जाने क्युं, आज बहुत ही डरता था ॥



पिछा कर रहे तिनो युवक, उसको आगे से घेर लिए ।

अपनी नीच हरकतों को, उसके साथ करने के लिये ॥



रानी फ़ंस गई आज, कोई न वहा सहारा था ।

तब तक आ रहा राजा ,जो उसका एक किनारा था ॥



आया राजा उनके पास वे, तिनो बोले खबरदार ।

सिधे तुम जावो अपने रस्ते, न बनो तुम जादा ईज्जत दार ॥



उन्होने किया राजा पर वार, उस पर करने लगे प्रहार ।

राजा भी झपट पड़ा उन पर,जैसे कोई शेर बहुत खुंख्वार ॥



उन तिनों को ऐस मारा, कि उनके होश उड़ गए ।

वे ऐसे भागे जैसे ,उन पर बज्र पड़ गए ॥



राजा को थोड़ा खुन रिस रहा, रानी ने झट दुपट्टा फ़ाड़ा है ।

राजा के घाव पर बांधकर, हाय रे खुन कितना गाढ़ा है ॥



राजा को जरा मुर्छा आई ,रानी झट अपनी जांघ पे लिटाई है ।

राजा ने थोड़ी आह भरी, तो रानी थोड़ा शर्माई है ॥



उसकी जब चेतना जागी, वह उठ के बैठ गया थोड़ा ।

रानी बोली यदि आप न आते तो, मेरा ईज्जत लुट गया होता ॥



मै एहसानों से दब गई हुं, मुझे आपकी ही है अब आश ।

मै उपकार चुका सकूं आपका ,मै बन जाऊं यदि आपकी श्वांश ॥



राजा ने कहा नही-नही, ऐसी बात आप क्यों कहती है ।

मै झोपड़ पट्टी का वासी, और आप महलों मे रहती है ॥



रानी ने कहा तब राजा से, मुझे नही महलों की चाह ।

सिर्फ़ चाहिए तुम्हारा दामन, नही मुझे किसी की परवाह ॥



बातें करते-करते राजा ने, रानी को अपने पास बिठाया है ।

रानी भी उसमे समा गई ,जैसे कोई पेड़ की छाया है ॥



अब इनकी शुरू हुई प्रेम लिला, और प्यार की बातें ।

इनके कई दिन गुजर गए ,और बित गई कई रातें ॥



इन दोनो मे अमिट प्यार, नित नए कल्पनाएं करते थे ।

इनका प्यार था इक सागर ,जो उसमे ही डूबे रहते थे ॥



यह बात पहुच गई कानों कान, जो रानी के पिता थे जमींदार ।

जमिंदार बौखला गया, जैसे हुआ हो उस पर बज्र प्रहार ॥



उसने बुलवाया नौकर को, बोला राजा के पिता को बुलवावो ।

उस दरबान के पट्ठे को भी, साथ मे लेकर के आवो ॥



बाप-बेटे दोनो आए, उस जमींदार की हवेली मे ।

बोला हुजूर आप माई-बाप हो, क्युं बुलवाए जल्दी मे ॥



बेटा बोला नही पिता जी, क्युं तुम इनसे डरते हो ।

तुम इनके भय से क्युं, इनकी जी हजूरी करते हो ॥



जमींदार क्रोध से लाल हो उठा,उसके बेटे की सुनकर बोली ।

उसने अपनी बन्दूक तान कर,झट मार दी है उसके सीने मे गोली ॥



धाय-धाय की आवाज को सुनकर ,अन्दर से दौड़ी आई रानी ।

उसने राजा को उठा लिया, उसकी आंखो से बहते थे पानी ॥



तुमने उसी को मार दिया ,जिसने मेरी लाज बचाई थी ।

तुम अपनी ही माया मे अन्धे हो ,यह गलत नही सच्चाई है ॥



झट उसने दुसरी बन्दूक को लेकर,अपने पिता को गोली मारी ।

वह दुख से पागल हो करके ,खुद को भी गोली मारी ॥



राजा का बाप भी बूढ़ा था ,वह पुत्र शोक सहन कर नही पाया

वह यह सब देख करके, अपने प्राणों को भी गंवाया..



मोहन श्रीवास्तव (कवि)

www.kavyapushpanjali.blogspot.com

दिनांक-१९/४/१९९१

एन.टी.पी.सी दादरी गाजियाबाद(उ.प्र.)



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