दो दिलों के आपस मे मिलने से ,फ़ूलों की महक सी आती है !
पर दोनो के आपस मे बिछुड़ने मौत की घुटन सी आती है !!
दो युगल प्रेमियो का किस्सा ,मै अपनी जुबा से सुनाता हूं ।
वे प्रेमी नही प्रेम के संगम थे, मै उनके गीत सुनाता हूं ॥
उस माया रुपी नगरी मे, वे दोनो प्रेमी रहते थे ।
अपने अपने खयालों, वे दोनो खोए रहते थे ॥
प्रेमी का नाम था राजा, प्रेमिका को कहते थे रानी ।
दोनो ही आधुनिक बिचारों के, पढ़े-लिखे और ग्यानी ॥
राजा के यहा गरीबी थी, पर रानी के दौलत थी बेशुमार।
राजा का पिता दरबान था, रानी के यहा ही था नौकर ॥
राजा कर रहा था एम.काम., रानी ने भरा था बी.ए का फ़ार्म ।
एक ही कालेज के दोनो क्षात्र थे,रखते थे बस काम से काम ॥
दोनो ही शख्श सजीले थे, लगते थे जैसे कोई शबनम ।
राजा पढ़ने मे होशियार, रानी भी नही थी उससे कम ॥
उस दिन बादल घिर आए थे, आंधी भी आने वाली थी ।
क्लास खत्म हुए दोनो के, रानी भी जाने वाली थी ॥
रानी क्लास से बाहर आई, चलने लगी हौले-हौले ।
उसके पिछे दो तीन युवक, चलने लगे हौले-हौल ॥
रानी के घर का कुछ दूर रास्ता, जंगल से होकर गुजरता था ।
उसका मन न जाने क्युं, आज बहुत ही डरता था ॥
पिछा कर रहे तिनो युवक, उसको आगे से घेर लिए ।
अपनी नीच हरकतों को, उसके साथ करने के लिये ॥
रानी फ़ंस गई आज, कोई न वहा सहारा था ।
तब तक आ रहा राजा ,जो उसका एक किनारा था ॥
आया राजा उनके पास वे, तिनो बोले खबरदार ।
सिधे तुम जावो अपने रस्ते, न बनो तुम जादा ईज्जत दार ॥
उन्होने किया राजा पर वार, उस पर करने लगे प्रहार ।
राजा भी झपट पड़ा उन पर,जैसे कोई शेर बहुत खुंख्वार ॥
उन तिनों को ऐस मारा, कि उनके होश उड़ गए ।
वे ऐसे भागे जैसे ,उन पर बज्र पड़ गए ॥
राजा को थोड़ा खुन रिस रहा, रानी ने झट दुपट्टा फ़ाड़ा है ।
राजा के घाव पर बांधकर, हाय रे खुन कितना गाढ़ा है ॥
राजा को जरा मुर्छा आई ,रानी झट अपनी जांघ पे लिटाई है ।
राजा ने थोड़ी आह भरी, तो रानी थोड़ा शर्माई है ॥
उसकी जब चेतना जागी, वह उठ के बैठ गया थोड़ा ।
रानी बोली यदि आप न आते तो, मेरा ईज्जत लुट गया होता ॥
मै एहसानों से दब गई हुं, मुझे आपकी ही है अब आश ।
मै उपकार चुका सकूं आपका ,मै बन जाऊं यदि आपकी श्वांश ॥
राजा ने कहा नही-नही, ऐसी बात आप क्यों कहती है ।
मै झोपड़ पट्टी का वासी, और आप महलों मे रहती है ॥
रानी ने कहा तब राजा से, मुझे नही महलों की चाह ।
सिर्फ़ चाहिए तुम्हारा दामन, नही मुझे किसी की परवाह ॥
बातें करते-करते राजा ने, रानी को अपने पास बिठाया है ।
रानी भी उसमे समा गई ,जैसे कोई पेड़ की छाया है ॥
अब इनकी शुरू हुई प्रेम लिला, और प्यार की बातें ।
इनके कई दिन गुजर गए ,और बित गई कई रातें ॥
इन दोनो मे अमिट प्यार, नित नए कल्पनाएं करते थे ।
इनका प्यार था इक सागर ,जो उसमे ही डूबे रहते थे ॥
यह बात पहुच गई कानों कान, जो रानी के पिता थे जमींदार ।
जमिंदार बौखला गया, जैसे हुआ हो उस पर बज्र प्रहार ॥
उसने बुलवाया नौकर को, बोला राजा के पिता को बुलवावो ।
उस दरबान के पट्ठे को भी, साथ मे लेकर के आवो ॥
बाप-बेटे दोनो आए, उस जमींदार की हवेली मे ।
बोला हुजूर आप माई-बाप हो, क्युं बुलवाए जल्दी मे ॥
बेटा बोला नही पिता जी, क्युं तुम इनसे डरते हो ।
तुम इनके भय से क्युं, इनकी जी हजूरी करते हो ॥
जमींदार क्रोध से लाल हो उठा,उसके बेटे की सुनकर बोली ।
उसने अपनी बन्दूक तान कर,झट मार दी है उसके सीने मे गोली ॥
धाय-धाय की आवाज को सुनकर ,अन्दर से दौड़ी आई रानी ।
उसने राजा को उठा लिया, उसकी आंखो से बहते थे पानी ॥
तुमने उसी को मार दिया ,जिसने मेरी लाज बचाई थी ।
तुम अपनी ही माया मे अन्धे हो ,यह गलत नही सच्चाई है ॥
झट उसने दुसरी बन्दूक को लेकर,अपने पिता को गोली मारी ।
वह दुख से पागल हो करके ,खुद को भी गोली मारी ॥
राजा का बाप भी बूढ़ा था ,वह पुत्र शोक सहन कर नही पाया
वह यह सब देख करके, अपने प्राणों को भी गंवाया..
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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दिनांक-१९/४/१९९१
एन.टी.पी.सी दादरी गाजियाबाद(उ.प्र.)
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