कहां गये आजाद, भगत सिंह,
नेहरू-शास्त्री,गांधी ।
कहां गये आजादी, के दीवाने,
और सुभाष बोष, की क्रान्ति ॥
आजादी दिलाई थी, हम सब को,
क्या-क्या सपने, देखे थे ।
सब कुछ निछावर, कर के अपना,
मुस्काते भारत का, सपना देखे थे ॥
आज के भारत को, देख-देख कर,
उनकी आत्माएं, रोती होंगी ।
भ्रष्टाचार में डूबे, भारत से,
उनके दिल में, वेदना होती होगी ॥
चारों तरफ, लूट-पाट,
अत्याचार, चरम पर है ।
नारियों की ईज्जत, लुट रही आज,
और संकट अपने, वतन पर है ॥
वोटों के विकास में, दिलचस्पी है बहुत,
पर देश के विकास मे, ध्यान है कम इनका ।
दिन-रात बढ़ रही, किमतों से,
प्रजा का हाल, बिन जीवन का ॥
दर्द से कराहते हुए, भारत को,
आकर छुटकारा, दिला जावो ।
मातॄ भूमि की, डूबती नइया को,
आकर, पार लगा जावो ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
27-02-2000,sunday,8pm,
chandrapur,maharashtra.
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