Monday 19 February 2024

वो तो रात सुहाग जैसी मनाते रहे

हो गया था उन्हे कल की रात क्या,
वो तो रह-रह के बिजली गिराने लगे !
उम्र ढलती हुई जा रही है मगर,
रात को बांसुरी वो बजाने लगे !!
हो गया था उन्हे...

मै तो हैरान थी हाल को देखकर,
वे जब बाहों मे लेकर सुलाने लगें !
पक गए बाल और हिल रहे दांत है,
उम्र छब्बीस का हम पर जमाने लगें !!
हो गया था उन्हे...

हिल रहा तन-बदन झुक रही है कमर,
बातें हकला के वे करते जा रहे !
मै तो खामोश थी उनकी आगोश मे,
वो तो ज़ुल्फ़ों को मेरे सहलाते रहे !!
हो गया था उन्हे...

हो रही मैं भी तो बचैन थी,
आग तन मे मेरे वो लगाते रहे !
चांदनी रात थी और पुर्वा हवा,
वे तो रात सुहाग जैसी मनाते रहे !!
हो गया था उन्हे कल की रात क्या...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
२२//१९९९,रविवार,चन्द्रपुर महा.


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