नये जमाने के, फैशन मे,
हम आज तेजी से, बढ़ रहे हैं ।
अपनी संस्कृति को, भुला कर के,
हम अंग्रेजों का, नकल कर रहे हैं ॥
अम्मा-बाबू जी, भूल-भाल कर,
हम उन्हें, डैडी-मम्मी कहते ।
भजन संगीत से, मुंह को फेर कर,
हम अब डिस्को-पाप, हैं सुनते ॥
दाढ़ी-मूंछें, साफ करा-कर,
हम अपनी सुन्दरता का, नजारा करते हैं ।
बेढंगे कपड़े, पहन-पहन कर,
हाय-बाय से, ईशारा करते हैं ॥
सर पे दुपट्टा, तन पे साड़ी का,
अब जाता, रहा जमाना ।
अंग प्रदर्शन वाले, कपड़े पहनतीं
और बाल कटाती मर्दाना ॥
टी.वी चैनलों की, अश्लीलता देख-देख कर,
बेहयायी, दिन-दिन बढ़ रहा है ।
गंदे चल-चित्रों के, प्रभाव से,
बच्चों का मन भी, सड़ रहा है ॥
यदि इसी राह पे, चलते रहे तो,
हम अपनी पहचान, भुला देंगे ॥
भारतीय संस्कृति पर, हम अपने से,
विदेशी फैशन का, झण्डा फहरा देंगे ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
29-12-1999,11:50am,wednsday,
chandrapur,maharashtra.
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