अब आ गया जमाना, घुसखोरों का,
जहां खुले आम हैं, रिश्वत लिये जाते ।
बेइमानी के पैसों से अब,
खुब मल-मल के, नहाये जाते ॥
ये घुसखोर हैं, सभी जगह मे,
गोदामों में या, कार्यालयों में ।
अब विद्यालय भी, अछुते नहीं हैं इनसे,
ये मिल रहे हैं, खुब देवालयों में ॥
इनके ईमान हैं, मर से गये ,
इन्हें ईमानदारी का, खुन नहीं भाता ।
इन सबका मिठा ये जहर,
इनकी परिवार में भी, खुब पिया जाता ॥
किसी काम को, करने के लिये,
जो समय सीमा, निर्धारित है ।
यदि परेशान कर, रहा कोई बार-बार,
तो समझो, वो भ्रष्टाचारी है ॥
आमतौर की भाषा में अब,
रिश्वत को सुबिधा शुल्क, है कहा जाता ।
बंदर बांट खुब, कर रहे हैं ये,
और मुल्क हमारा, जला जाता ॥
पर संस्कार हैं, जिनके अच्छे,
वे रिश्वत से, कभी नहीं बिकते ।
गर्व से सीना, तना रहता है उनका,
पर घुसखोर तो, हमेशा डरा करते ॥
अब आ गया जमाना, घुसखोरों का,
जहां खुले आम हैं, रिश्वत लिये जाते ।
बेइमानी के, पैसों से अब,
खुब मल-मल के, नहाये जाते ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
28-07-2013,sunday,4pm,
pune,maharashtra.
No comments:
Post a Comment