हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥
पैसों की ताकत, के बल पर,
वे अपना कानून, चलाते हैं ।
शरीफों का नकाब, पहन कर के,
वे मजबुरों का, खून बहाते हैं ॥
लोगों के चेहरे, देख-देख कर,
ईनाम-पुरष्कार, दिए जाते ।
कभी औपचारिकता, बस ही,
महापुरुषों को याद, किए जाते ॥
अच्छी पढ़ाई, करने पर भी,
उन्हें नौकरी, नही मिलती ।
आरक्षण के जहर, के कारण,
उनकी तकदीर, नही खिलती ॥
महंगाई के, कफन के साए मे,
सब घुट-घुट, कर जीते रहते ।
लाचारी व गरीबी, से तंग आकर,
वे आसुवों के घूंट पिते रहते ॥
हाय यह कैसा, जमाना आया है,
जिसे देख के, आखें भर आएं ।
इस अन्धे-बहरे, जमाने मे,
न्याय नही है, ठहर पाए ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
24-12-1999,friday,7.25pm,
chandrapur,maharashtra.
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