विकास के नाम प,र राज्यों का बटवारा,
इस बात से तो, असहमत हैं हम ।
हां, नेता-मंत्रियों का, होता है विकास,
इस बात से तो, सहमत हैं हम ॥
भाई-भाई में, फूट डालकर,
ये खुश होके, ताली बजाते हैं ।
लोगों के दिलों में, नफरत पैदा कर,
ये हम जीत गये, चिल्लाते हैं ॥
अब तक जितने, बटवारे हुए,
उनमे कोई खास, परिवर्तन दिखता है नहीं ।
कुछ एक-दो, राज्यों को छोड़कर,
कहीं कोई विकास, दिखता है नहीं ॥
छोटे राज्यों की, नित उठ रही मांग,
ये देश के हित मे, ठीक नही ।
कहीं हों न जायें, हम फिर से गुलाम,
यह बात भी हो, सकता है सही ॥
यदि निष्पक्ष भाव से, सब जगह हो विकास,
तो ऐसे बटवारों से, बच सकते हैं हम ।
बे-वजह इन खर्चों, के बोझ को,
बहुत कुछ कम कर, सकते हैं हम ॥
विकास के नाम पर, राज्यों का बटवारा,
इस बात से तो, असहमत हैं हम ।
हां, नेता-मंत्रियों का, होता है विकास,
इस बात से तो, सहमत हैं हम ॥
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
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