छंद:- पञ्चचामर
"महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है"
प्रयाग राज तीर्थराज तीर्थ में महान् है।
कलिंदपुत्रि गंग शारदे मिलें प्रमाण है।।
कपिश्वराय लेट के सभी को दर्श दे रहे।
समस्त पाप लोग के सुधांशु नीर में बहे।।
वटेषु वृक्ष आदि वृक्ष दिव्य दर्श दे रहे।
महात्म्य को ऋषी मुनी पुराण वेद हैं कहें।।
भारद्वाज की कुटी सदा ही विद्यमान है।
निषादराज राम मेल को कहे पुराण है।।
उतार भक्त केवटा विनम्र भाव ढंग से।
निषादराज भ्रात संग राम सीय गंग से।।
पुनीत पावनी धरा त्रिलोक में प्रसिद्ध है।
त्रिवेणि नीर सोम के समान दिव्य शुद्ध है।।
प्रयाग में निवास जो करें सदैव धन्य हैं।
महान् तीर्थराज भूमि सर्वदा प्रणम्य है।।
अनेक दिव्य जीव तीर्थ में निवास हैं करें।
विभिन्न रूप धार के सदैव मोद में भरें।।
पवित्र कुम्भ दीर्घ कुम्भ बार बार है लगे।
त्रिवेणि में नहान से समस्त पाप हैं भगे।।
अनेक साधु सन्त देव नाग का जमावड़ा।
मनुष्य खेचरादि आदि दीन या धनी बड़ा।।
सनातनी वहां जुटें भुला सभी विभेद को।
न जाति पात ऊंच नीच छोट दीर्घ भेद हो।।
अनेक शंभु भक्त भांति भांति के वहां जुटें।
नमः शिवाय नाम जाप बार बार हैं रटें।।
प्रघोर ठंड में अनेक वस्त्रहीन ही रहें।
भभूत गात धूनिका रमाय वेद को कहें।।
अनेक सिद्ध साधु सन्त राम की कथा कहें।
सुभक्त ध्यानमग्न ज्ञान के प्रवाह में बहें।।
पुनीत माघ मास में त्रिवेणि स्नान को करें।
अनेक कल्पवाश लोग योग मोद में भरें।।
समस्त तीर्थ में सदैव वेदमन्त्र गूंजते।
विहंग के समान लोग यत्र तत्र कूजते।।
प्रयाग के महात्म्य का न हो सके बखान है।
प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।
प्रणाम बार बार है प्रणाम बार बार है।।
कवि मोहन श्रीवास्तव
२६.०३.२०१४
महुदा, झीट अम्लेश्वर दुर्ग छत्तीसगढ़
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