Tuesday 24 January 2023

"चंद्रशेखर अष्टकम" भावानुवाद(आदि शंकराचार्य द्वारा रचित चन्द्रशेखर स्तोत्र)


चंद्रशेखर अष्टकम" भावानुवाद

(आदि शंकराचार्य द्वारा रचित चन्द्रशेखर स्तोत्र)


गीतिका छंद

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गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 


जो बना निज चाप में हर, रत्न पर्वत हैं भरें।

विष्णु को शर जो बनाकर,युद्ध शेखर ने करें।।

वासुकी सुतली बना रण, नाश तीनों पुर किये।

भूतभावन परम पावन, पूज्य हैं सबके लिये ।। १।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




ज्योति निज चमके सदा ही, युग्म पंकज पाद है।

सुर असुर नर यक्ष किन्नर, पाय आशीर्वाद हैं।। 

पूजते नित पंच कल्पक, वृक्ष पुष्प सुगंध से।

बाँधते अनुराग पूरित, प्रेम के अनुबंध से।। २।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




शंभू न्यारे काम जारे, नेत्र अग्नि ललाट है।

भस्म काया विरत माया, विश्व के सम्राट है।।

दिव्यशंकर रूप सुंदर, गृह हिमालय देश है।

व्याघ्र अबंर मस्त कुंजर, चर्म शोभित वेष है।। ३।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 




पाद पंकज विष्णु ब्रह्मा, पूजते हैं प्राण से।

दिव्यगंगा गति तुरंगा, सिर धरे सम्मान से।। 

बिन्दु जल के चमक झलके, है जटा के जूट में। 

बूँद झटके दूर छिटके, हिमशिखर के कूट में।। ४।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



यक्षराज सखा कलाधर, नाश भग नैना करे।

सर्पभूषण दिव्य तन तन, वाम अंक उमा भरे।।

गरलपायी नीलकंठी, देह विषधर से घिरे। 

कर कुठार कपाल कंठन, सहचरी है मृग फिरे।।५।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वंदनीय महान हरहर, नारदादि प्रसंशते।

सुमुखमण्डल कर्ण कुण्डल, वीतराग उमापते।।

भूमिवल्लभ अंतकासुर, प्राण अंत तुम्हीं किए।

तरुकल्प बन आप हरहर, भक्त को वर दीजिए।।६।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



कौन बन जग का उजाला, सृष्टि अंधियारा हरे।

कौन भक्तविकार नाशक, कौन पालन जग करे।।

कौन है यमराज नाशक, जगतबंधन जो हने।।

कौन भूतों का सहायक, सिन्धुभव तारक बने।।७।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वैद्य हैं दुःख हेतु हरहर, नष्ट व्याधि सभी करें।

दक्ष यज्ञ विनाशकर्ता, तीन रूप गुणी धरें।।

भक्ति मोक्ष प्रदानकर्ता, नेत्र मस्तक सोहते।

पाप नष्ट करें सभी शिव, भक्त के मन मोहते।।८।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



पूजते सब भक्त वत्सल, भक्त पे करुणा करें।

कौन है निधि नित्यधारक, जो दिशा में रंग भरे।।

मुख्य हैं सब जीव में प्रभु, हर अगम्य अपार हैं।

जो परे सबसे सदा शुचि, वेद के वह सार हैं।।९।। 

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



जो रचे ब्रह्माण्ड सारे, जो उसे फिर रक्षते।

व्यापते हैं वो चराचर, काल बंधन नष्टते।।

हैं सकल ब्रह्माण्ड के हर , जीव में बसते वही।

खेलते हर जीव में वो, भाव से हँसते वही।। १०।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



वो सभी जड़जीव नायक, कौन उनके समान हैं।

वो सदा उपकारकारी, प्रथम संत सुजान है।।

रचयिता सुत मृकंडु का, मृत्यु आशंका डरा।

अभय पाया नीलकंठी , भक्तिरस से तब भरा।। ११।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 



भक्ति पूर्वक जो पढे़ नित, चन्द्रशेखर पाठ को।

मृत्यु का भय दूर होता, पूर्ण जीवन ठाठ हो।।

धान्यधन परिपूर्ण सुखमय,नाम यश पुरवा बहे। 

अंत में वह मुक्ति पाकर, शंभु लोक सदा रहे।।११।।

गंगशेखर चंद्रशेखर, पांँव में जब मैं पड़ा।

क्यों डरूंँ यम से भला फिर,सामने यदि है खड़ा।। 


कवि मोहन श्रीवास्तव

गुजरा, पाटन दुर्ग

22.1.2023


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