Saturday 1 October 2011

"ए शनि की साढ़े साती हैं"

मसीहा नही ए गरीबों के ,
ए तो एक कसाई हैं !
सत्ता मे पागल होकर के ,
ए भारत के लिए मंहगाई हैं !!

ए शनि की साढे़ साती हैं ,
जो लोगों पर कहर ढा रहे हैं !
मंहगाई का कफ़न पहना कर ,
जिंदा ही हमे जला रहे हैं !!

आरक्षण लाओ , गरीबी हटावो का नारा देकर,
ए हमे अपनी बातों मे भरमा रहे हैं !
अपने पेटों को भरने के लिए ,
ए हमे बलि का बकरा बना रहे हैं !!

दया नही है इनके दिलों मे,
निर्दयता भरा है इनके नस-नस में !!
केवल झूठे-मिठी बातों से,
रखते हैं सब को अपने बस मे !!

एक आम आदमी सहमा -सहमा,
इनके मंहगाई रोज बढ़ाने से !
चैन से सब सो नही पाते है,
ऐसे बढ़ाते मंहगाई के
चैन से सब सो नही पाते है,
ऐसे बढ़ाते मंहगाई के दिवानों से !!
दिवानों से !!

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक- //२०००, शनिवार, समय-सुबह ११.२० बजे
चंद्रपुर (महाराष्ट्र)



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