Friday 18 November 2011

राजा-रानी( दो युगल प्रेमियो की कहानी)



दो दिलो के आपस मे मिलने से फ़ूलो की महक सी आती है!
पर दोनो के आपस मे बिछुड़ने मौत की घुटन सी आती है!!

दो युगल प्रेमियो का किस्सा मै अपनी जुबा से सुनाता हूं
वे प्रेमी नही प्रेम के संगम थे मै उनके गीत सुनाता हूं
उस माया रुपी नगरी मे वे दोनो प्रेमी रहते थे
अपने अपने खयालो वे दोनो खोए रहते थे
प्रेमी का नाम था राजा, प्रेमिका को कहते थे रानी
दोनो ही आधुनिक बिचारों के पढ़े-लिखे और ग्यानी
राजा के यहा गरीबी थी पर रानी के दौलत थी बेशुमार
राजा का पिता दरबान था रानी के यहा ही था नौकर
राजा कर रहा था एम.काम., रानी ने भरा था बी.ए का फ़ार्म
एक ही कालेज के दोनो क्षात्र थे
रखते थे बस काम से काम
दोनो ही शख्श सजीले थे लगते थे जैसे कोई शबनम
राजा पढ़ने मे होशियार रानी भी नही थी उससे कम
उस दिन बादल घिर आए थे आंधी भी आने वाली थी
क्लास खत्म हुए दोनो के रानी भी जाने वाली थी
रानी क्लास से बाहर आई चलने लगी हौले-हौले
उसके पिछे दो तीन युवक चलने लगे हौले-हौले
रानी के घर का कुछ दूर रास्ता जंगल से होकर गुजरता था
उसका मन न जाने क्युं आज बहुत ही डरता था
पिछा कर रहे तिनो युवक उसको आगे से घेर लिए
अपनी नीच हरकतों को उसके साथ करने के लिए
रानी फ़ंस गई आज कोई न वहा सहारा था
तब तक आ रहा राजा जो उसका एक किनारा था
आया राजा उनके पास वे  तिनो बोले खबरदार
सिधे तुम जावो अपने रस्ते न बनो तुम जादा ईज्जत दार
उन्होने किया राजा पर वार, उस पर करने लगे प्रहार
राजा भी झपट पड़ा उन पर्जैसे कोई शेर बहुत खुंख्वार
उन तिनो को ऐस मारा कि उनके होश उड़ गए
वे ऐसे भागे जैसे उन पर बज्र पड़ गए
राजा को थोड़ा खुन रिस रहा रानी ने झट दुपट्टा फ़ाड़ा है
राजा के घाव पर बांधकर, हाय रे खुन कितना गाढ़ा है
राजा कोजरा मुर्छा आई ,रानी झट अपनी जाघ पे लिटाई है
राजा ने थोड़ी आह भरी तो रानी थोड़ा शर्माई है
उसकी जब चेतना जागी वह उठ के बैठ गया थोड़ा
रानी बोली यदि आप न आते तो मेरा ईज्जत लुट गया होता
मै एहसानो से दब गई हु मुझे आपकी ही है अब आश
मै उपकार चुका सकूं आपका मै बन जाऊं यदि आपकी श्वांश
राजा ने कहा नही-नही ऐसी बात आप क्यो कहती है
मै झोपड़ पट्टी का वासी और आप महलो मे रहती है
रानी ने कहा तब राजा से मुझे नही महलो की चाह
सिर्फ़ चाहिए तुम्हारा दामन नही मुझे किसी की परवाह
बातें करते-करते राजा ने रानी को अपने पास बिठाया है
रानी भी उसमे समा गई जैसे कोई पेड़ की छाया है
अब इनकी शुरू हुई प्रेम लिला और प्यार की बातें
इनके कई दिन गुजर गए और बित गई कई रातें
इन दोनो मे अमिट प्यार नित नए कल्पनाए करते थे
इनका प्यार था इक सागर
जो उसमे ही डूबे रहते थे
यह बात पहुच गई कानो कान, जो रानी के पिता थे जमींदार
जमिंदार बौखला गया जैसे हुआ हो उस पर बज्र प्रहार
उसने बुलवाया नौकर को, बोला राजा के पिता को बुलवावो
उस दरबान के पट्ठे को भी साथ मे लेकर आवो
बाप-बेटे दोनो आए उस जमींदार की हवेली मे
बोला हुजूर आप माई-बाप हो क्युं बुलवाए जल्दी मे
बेटा बोला नही पिता जी क्युं तुम इनसे डरते हो
तुम इनके भय से क्युं इनकी जी हजूरी करते हो
जमींदार क्रोध से लाल हो उठा
उसके बेटे की सुनकर बोली
उसने अपनी बन्दूक तान कर
 झट मार दी है उसके सीने मे गोली
धाय-धाय की आवाज को सुनकर अन्दर से दौड़ी आई रानी
उसने राजा को उठा लिया उसकी आंखो से बहते थे पानी
तुमने उसी को मार दिया जिसने मेरी लाज बचाई थी
तुम अपनी ही माया मे अन्धे होयह गलत नही सच्चाई है
झट उसने दुसरी बन्दूक को लेकर
अपने पिता को गोली मारी
वह दुख से पागल हो करके
खुद को भी गोली मारी
राजा का बाप भी बूढ़ा था वह पुत्र शोक सहन कर नही पाया
वह यह सब देख करके अपने प्राणों को भी गंवाया..

मोहन श्रीवास्तव
दिनांक-१९/४/१९९१
एन.टी.पी.सी दादरी गाजियाबाद(उ.प्र.)



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