Friday 18 November 2011

प्यारी कुर्सी

ये कैसा चुनाव का जोर
चारों तरफ़ उठ रहा शोर

सफ़ेद कुर्ता और धोती
खादी के जाकेट और टोपी

बिक्री बढ़ गई है इनकी
बनिए बेचे भरपूर जोर

कई बने है नेता
जो थे कल तक और

इनको नही देश की चिन्ता
नही गरीबी का है ध्यान

कैसे बन जाए हम मन्त्री
मेरे पूरे हों कब अरमान

इनके दिल होते है काले
उपर से ये भोले-भाले

ये नित नए-नए करते वादे
इनके नही नेक इरादे

ये वोटों के लिए करते अर्ज
जैसे मांगते हो ये कर्ज

इन्हे चाहिए शोहरत-दौलत
और साथ मे सुन्दर औरत

इन्हे लगती किसी कि आह
इन्हे नही देश की परवाह

वोटो के लिए ये करवाते झगड़े
हिन्दू-मुस्लिम प्राय: लड़ते

इनके एक ही अरमान
चाहे देश बने श्मशान

मेरी कुर्सी सदा रहे आबाद
जाड़ा-गर्मी या हो बरसात

इन सब की एक ही मांग
हमे जीतावो अब की बार...

मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२५//१९९१, रात्रि -.३० बजे,

एन.टी.पी.सी. दादरी गाजियाबाद (.प्र.)

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