आज बेटी की कैसी ये डोली चली!
बाबुल के घर से प्यारी दुल्हनिया चली
!!
आज बेटी की.........
मा की ममता और बाप के प्यार को,
त्याग कर आज बाबुल के घर से चली
अपने भाई की वो थी प्यारी बहन,
अपने भाभी की थी वो दुलारी ननद
आज सबसे बिछुड़ कर के कैसी चली
बाबुल के घर से प्यारी दुल्हनिया चली...
कैसी भोली थी वो कितनी शर्मिली थी
सीधे सादे बिचारो की वो स्वामिन थी
मेरे आंगन की गुड़िया कहा को चली
बाबुल के घर से..........
अपनी सखियो सहेली का दिल तोड़कर
आज कैसी चली सबसे मुह मोड़ कर
लाल साड़ी मे कैसी वो दिखती भली
बाबुल के घर से.....
डोली को चार कहार लेकर चले
अपनी डोली को कैसे सजाए भले
सब दुखित है किसी को खुशी है नही
सबके आखो से आसू की धारा चली
बाबुल के घर से....
तुम जहा भी रहो बेटी सुख से रहो
कोई दुख भी आए उसको हस के सहो
अपने पिय की बनो आख की पुतली
बाबुल के घर से प्यारी दुल्हनिया चली
आज बेटी की कैसी ये डोली चली....
मोहन श्रीवास्तव (कवि)
www.kavyapushpanjali.blogspot.com
दिनांक-२३/४/१९९१ मंगलवार रात-९.२५ बजे,
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